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प्रश्न 18: आप धोवन को कम हिंसक समझते हैं, लेकिन कभी-कभी धोवन में
से बुलबुले निकलते देखे गये हैं। यानि खमीर बनने के कारण यह तो ज्यादा हिंसक बन जाता है। खमीर बनने से धोवन स्वास्थ्य के लिये भी हानिकारक हो जाता है। अतः इसमें बुद्धिमानी नहीं है कि धोवन बनाने
की रूढ़ी से चिपके रहें। उत्तर : हवा के बुलबुले दो कारणों से निकल सकते हैं। यदि धोवन बनाते
वक्त हवा की पानी में घुलनशीलता कम हो जाती है, तो अतिरिक्त हवा उस पानी में से बुलबुलों के रूप में निकलेगी। दूसरा कारण हो सकता है कि खमीर पड़ने के कारण उसमें से कार्बन-डाइ
ऑक्साइड बुलबुलों के रूप में निकले। यदि असावधानी के कारण धोवन में खमीर उठने की स्थिति बनती है (यानि उसमें आटा या अन्य कार्बनिक पदार्थ की मात्रा ज्यादा होने से), तो यह जरूरी नहीं है कि वह धोवन जहर बन गया हो या स्वास्थ्य के लिये हानिकारक बन गया हो । जलेबी, डबल रोटी आदि खमीर डालकर ही बनाये जाते हैं। इनको पूरी दुनिया खाती है। यदि अज्ञानवश हम ऐसे धोवन को जहर या स्वास्थ्य के लिये अभक्ष्य कहने का ढिंढोरा पीटते हैं, तो क्या हम धोवन के प्रति घृणा फैलाने का पाप तो नहीं कर रहे है?
फिर भी, आधुनिक जमाने में धोवन बनाने की प्रक्रिया को ज्यादा स्पष्ट मात्रा में नियंत्रित कर सकते हैं। यदि राख या वैसे अन्य विजातीय पदार्थ काम में लेते हैं, तो खमीर की
सम्भावनाएँ खत्म हो जाती हैं। प्रश्न 19: घड़े में भण्डारण किये हुए कच्चे जल में हो रही असंख्य जन्म - मरण
की श्रृंखला के लिये मैं क्यों जिम्मेदार हूँ? यह तो पानी का अपना स्वभाव व भाग्य है। जिस तरह हमारे शरीर में बेक्टिरिया आदि जीवाणु का पूरा जंगल (Flora-Fauna) भरा पड़ा है, (खासकर पेट में), तो क्या चयापचय या अन्य आदतन होने वाली क्रियाओं में, प्रतिक्षण हो रही अनन्त जीवों की हिंसा का मैं जिम्मेदार हूँ ? क्या आगमों में पेट में या
घड़े में हो रही हिंसा की जिम्मेदारी मेरी बताई गई है? उत्तर : इसके 3 पक्ष समझ में आते हैं।
। हमारे शरीर में वनस्पति आदि प्राणी समूह हमारे शरीर की स्वतः होने वाली क्रियाओं पर निर्भर करते हैं। हमारा उन क्रियाओं पर कोई नियंत्रण नहीं रहता है। जीवन चलाने वाली इन चयापचय, श्वांस लेने
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