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________________ 3. 4. 1. प्रश्न 17b. उबालने की क्रिया ज्यादा क्रूर और आक्रामक है बनस्पत धोवन बनाने की क्रिया से । अग्निकाय के प्रयोग से पानी को उबालने में अग्निकाय के अतिरिक्त वायुकाय आदि की महान् हिंसा होती है, तब हम क्यों उबालने की क्रिया को अपनाते हैं ? उबाले या धोवन पानी पीने से क्या फायदे हैं ? 2. पानी बाहर निकालते हैं, तो पानी के जीवों को बहुत वेदना होती है। उस वेदना का निमित्त मुझे लगता है। यदि यह पानी अचित्त होता तो हम इस वेदना रूपी हिंसा से बच जाते । उत्तर : पहले भाग का उत्तर ऊपर दिया जा चुका है। अचित्त पानी के उपयोग से निम्नलिखित फायदे हैं. 3. हिंसा की मात्रा का सीमाकरणः जब धोवन या अचित्त पानी पीने का व्रत लिया जाता है तो पूरे दिन के लिये एक निश्चित मात्रा को ही अचित्त बनाया जाता है । यह एक अतिरिक्त लाभ है अचित्त पानी पीने का, व्रत लेने वालों को । 4. बाहर जानाः जब व्रती बाहर जाता है तो वह साधारणतया मिलने वाला कच्चा पानी तो पी नहीं सकेगा । अतः जगह-जगह पानी पीने से बच जायेगा। हो सकता है, उसे थोड़ा परिषह सहन करने का लाभ भी मिल जाये। वो वापस घर लौटकर ही अपनी प्यास बुझा पायेगा । व्रत और सीमाकरण का पूरा लाभ मिलने की सम्भावना रहती है। एक श्रावक जानता है कि अचित्त पानी सब जगह नहीं मिलता है । अतः इसका व्रत लेने से श्रावक सोच समझकर एक सहन करने की क्षमता उत्पन्न करता है, जिससे सम्भावित कठिनाइयों को समभाव से सहन कर सके । अतः यह व्रत तप की श्रेणी में आता है । I इस व्रत से व्यक्ति की इच्छाओं का निरोध होता है । इन्द्रिय निग्रह होने व्रत की सार्थकता बढ़ जाती है । व्रती कितने घड़ों / पिरंडों का पानी पीयेगा, इस पर नियंत्रण हो जाता है इसका भी एक अतिरिक्त प्रत्याख्यान किया जा सकता है इस प्रकार श्रावक को सीमाकरण का फायदा मिल जाता है। इससे स्वाद पर भी विजय प्राप्त होती है। क्योंकि उबालने या धोवन बनाने से पानी का स्वाद बदल जाता है । इस प्रकार इससे राग पर विजय प्राप्त करने में मदद मिलती है । Jain Education International (39) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006761
Book TitleScience of Dhovana Water
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJeoraj Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2012
Total Pages268
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size13 MB
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