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________________ 1. B) भाव हिंसा __ भावना के अनुरूप हिंसा 6 प्रकार की बताई गई है। इसको लेश्या भी कहते हैं। क्रूरता के पैमाने पर इनको परिभाषित किया गया है। इसका एक उदाहरण 6 भूखे व्यक्तियों द्वारा जामुन के पेड़ को देखकर, उनमें उठी 6 तरह की भावनाओं से संबंधित है। __ भावनाओं की मजबूती या क्रूरता से यह पता लगेगा कि शुभाशुभ कर्मों का बंध कितना मजबूत होगा। सबसे अतिक्रूर भावना से की हुई हिंसा से इतने कठोर कर्म का बंध होता है, कि वे निकाचित कर्म, तप द्वारा भी नहीं हटाये जा सकते हैं। उन्हें तो भोगना ही पड़ता है। C) उद्देश्य और कर्तव्य की भावना: हमें यतना और विवेक रखकर उन्हीं अनिवार्य क्रियाओं को करना चाहिये जो हमारे परिवार व समाज के लिये आवश्यक हों। हमें लोभ व राग के वश होकर क्रियाएँ नहीं करनी चाहिए। मन में हिंसा के प्रति प्रायश्चित्त की भावना रखते हुए करुणा के भाव रहने चाहिये। हिंसा का सीमाकरण तथा त्याग-प्रत्याख्यान करने की भावना रखनी चाहिये। व्यर्थ हिंसा की पहचान करना तथा उसे हटाने के लिये प्रयासरत रहना चाहिये। हिंसा के इस विश्लेषण के पश्चात् अब हम उपरोक्त प्रश्न का समाधान सही परिप्रेक्ष्य में ढूंढने का प्रयास करते हैं। यह सर्वविदित है कि उबालने में, धोवन बनाने से ज्यादा हिंसा होती है। अग्निकाय में 6 ही प्रकार के जीवों की हिंसा बताई गई है। (आचारांग सूत्र, पहला श्रुतस्कंध, पहला अध्याय) धोवन तो रसोई की आवश्यक क्रिया से बन सकता है। इस सहज क्रिया में वह उपफल के रूप में निकलता है। इस प्रकार का अचित्त पानी श्रावक व साधक की अहिंसक भावना व क्रिया को प्रदर्शित करता है। यदि धोवन को किसी दूसरी विधि से भी बनाना पड़े तो भी अक्रूरता व हिंसा के अल्पीकरण को प्रदर्शित करता है। यह कम हिंसक आरम्भजा हिंसा का ही एक भाग है। इस विधि में अग्निकाय की हिंसा की बचत होती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006761
Book TitleScience of Dhovana Water
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJeoraj Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2012
Total Pages268
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size13 MB
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