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________________ लेकिन यह देखा गया है कि ऊपरी गंगा का पानी या ग्रांडर पानी, लम्बे समय तक बैक्टेरिया मुक्त रहते हैं इसके दो कारण हो सकते हैं: इस पानी में ऐसे रोगाणुनाशक पदार्थ या खनिज घुले रहते हैं, जो रोगाणुओं जैसे त्रस जीवों की उत्पत्ति नहीं होने देते हैं। इसके प्रमाण के लिए, इस पानी का प्रयोगशाला में परीक्षण होना चाहिए। या इसमें घुली हुई ऑक्सीजन हवा उस रूप में रहती है, जो त्रस जीवों को आश्रय नहीं दे सकती। गंगा का पानी शायद पहली श्रेणी में आयेगा और ग्रांडर-पानी दूसरी श्रेणी में । इनको ठीक से समझने के लिए कुछ प्रयोगों और परीक्षणों की आवश्यकता है। प्रश्न 15 : अधिकांश जैनी यही समझते हैं कि पानी को उबालकर पीना आगम (शास्त्र) सम्मत है। लेकिन आज के कुछ पढ़े लिखे युवकों ने यह तर्क देना शुरू किया है कि जलकायिक जीवों को, पानी को, उबालकर, पहले ही मार देने में, कोई बुद्धिमानी नहीं है। उनका कहना है कि यह तर्क आगम सम्मत भी है तथा साथ-साथ में ज्यादा व्यावहारिक, आसान्, और सुगम है। यह तर्क तीव्र गति से फैल रहा है। इन दोनों विचारधाराओं में क्या वैज्ञानिकता है ? या अचित्त बना पानी का उपयोग करना मात्र एक रूढ़ि भर रह गया है ? या यह युवाओं की उस महत्त्वाकांक्षा का हिस्सा है, जिसके कारण वे अपनी हर क्रिया व सोच में आधुनिक दिखना चाहते हैं ? पुरानी व्यवस्था से विद्रोह करना चाहते हैं ? उत्तर : अभी तक व्रती जैन श्रावक अचित्त (उबला या धोवन) पानी ही पीते आये हैं। वर्तमान में कुछ आवाजें उपरोक्त तर्क को पेश करती दिखाई देती है। वीरायतन के सदस्यों ने भी इसी प्रकार का तर्क पेश किया है। इन सबका विश्लेषण वर्तमान के नये सिद्धांत “बिना डी.एन.ए. व आर.एन.ए. (DNA& RNA) का जीव” के परिप्रेक्ष्य में नीचे प्रस्तुत किया जा रहा है। सबसे पहले नये तर्क की समझदारी या बुद्धिमत्ता पर विचार करते हैं। तथा देखते हैं कि पुराने मत का जलकायिक जीवों की नई वैज्ञानिक अवधारणा की रोशनी में क्या वैज्ञानिक आधार बनता है। यह सही है कि उबालने से जल कायिक जीव मर जाते हैं। इससे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006761
Book TitleScience of Dhovana Water
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJeoraj Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2012
Total Pages268
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size13 MB
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