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की भावना या उद्देश्य और दूसरा है पदार्थ की मात्रा | साधक की भावना है -
उत्तर :
a)
खपत को कम करना तथा अपव्यय को हटाना, हिंसा या कष्ट का अल्पीकरण करना ।
b)
इसकी व्याख्या इस प्रकार की गई है। सचित्त पानी की एक बूंद में असंख्य अपकायिक जीव बताये गये हैं। इनमें जन्म-मरण की श्रृंखला अविराम रूप से चलती रहती है। चूंकि घर में रखे पानी के साथ हमारा राग या ममत्व है, इसलिए परिग्रह के दोष के साथ-साथ हम उस जन्म-मरण की हिंसा के भी निमित्त बनते हैं; जो स्वाभाविक रूप से चल रही है। उनकी संख्या पर विचार कीजिए। एक बूंद में असंख्य जीव और उनका हर समय में लगातार जन्म-मरण होना !
लेकिन यदि हम अपने उपयोग में आने वाली मात्रा का निर्धारण कर ते हैं, तो उसे अचित्त बनाने की हिंसा का भी सीमाकरण हो जाता है | श्रावक का उद्देश्य या भावना है कि अनन्त जीवों की हिंसा से बचें तथा जागरूक रह कर उन मरने वाले जीवों के प्रति करुणा की भावना रखें।
इसके अलावा, जब वह पानी एक बार अचित्त बना दिया जाता है तो वह कम से कम 8 घंटे तक अचित्त ही रहता है । इस तरह कच्चे पानी में होने वाली प्रतिक्षण की हिंसा से 8 घंटे तक बचाव हो जाता है । यहाँ तक कि उबालने में होने वाली तमाम हिंसा भी, 10-12 घंटों में भंडारण किये कच्चे (सचित्त) पानी में प्रतिक्षण हो सकने वाले असंख्य जीवों की हिंसा से भी कम मात्रा में होगी । उबला पानी 10 घंटों से ज्यादा समय तक अचित्त अवस्था में रह सकता है। इससे हमारी करूणा की भावना को संबल मिलता है ।
प्रश्न 14 : कुछ प्रकार के पानी में त्रसकाय या सूक्ष्म जीव लम्बे समय तक नहीं पनपते हैं। इसका क्या कारण है ?
साधारण पानी में बैक्टेरिया या अन्य त्रस जीव पैदा होते हैं। विज्ञान या आगम के अनुसार हवा संतृप्त पानी सभी प्रकार के जीवों को आश्रय देता है। मछली या सूक्ष्म जीव आदि ऑक्सीजन युक्त पानी में आसानी से पनपते हैं ।
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