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________________ उत्तर : इसमें 3-4 प्रकार के मुद्दे हैं, जो ठीक से समझने होंगे। हम लोग साधारणतया 1 दिन की आवश्यकतानुसार अचित्त पानी का भण्डारण करते हैं। पानी को पहले गरने से छानकर, जो जीवाणी होती है उसको उचित रूप से धोते हैं, जिससे कि उन छोटे-छोटे जीवों की रक्षा हो सके। उस छाने हुए पानी से रसोई और पिरंडे के बर्तन मांज, धोकर, धोवन बनाना एक निरापद क्रिया है। इसमें साधु या श्रावक का कोई निमित्त दोष नहीं है। इसमें हो रही पानी की हिंसा, आरम्भजा हिंसा का एक भाग है, जो हिंसा के अल्पीकरण से संबंधित है। धोवन भी, रसोई की एक सहायक क्रिया के रूप में बन जाता है। लेकिन उबाल कर या राख आदि मिलाकर धोवन बनाना आदि अचित्त पानी प्राप्त करने का निरापद या सहज तरीका नहीं है। फिर भी एक विवेकशील श्रावक, हिंसा के अल्पीकरण के सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए अचित्त पानी प्राप्त करने का नीचे मुजब उपाय करता है। a) प्रथम तरीका : अल्पतम हिंसा का मार्ग: उपयुक्त विजातीय पदार्थों से धोवन बनाना या सौर ऊर्जा से पानी उबालना। इस प्रकार तैयार किये हुए पानी से हिंसा का अल्पीकरण होता है। क्योंकि इसके लिए श्रावक पहले अपनी दैनिक आवश्यकता के अनुसार पानी की मात्रा का निर्धारण करता है। यह भी एक प्रकार की व्रत साधना है। जिससे श्रावक के मन व इन्द्रिय निग्रह की साधना होती है। सौर ऊर्जा के प्रयोग से तेजस्काय के जीवों की हिंसा से बचाव होता है। हिंसा में अल्पीकरण की भावना ही आरंभजा-हिंसा (अपरिहार्य) को संकल्पी-हिंसा से अलग करती है। b) दूसरी विधि : अग्नि जलाकर पानी को उबालना। इसमें अतिरिक्त अग्निकाय व वायुकाय आदि जीवों की हिंसा का प्रसंग रहता है। अतः जहाँ तक हो सके, गृहस्थों को अग्निकाय के प्रयोग से बचना चाहिए। केवल जब बादलों में सूरज छुपा हो, तथा धोवन बनाने का प्रमाणिक साधन उपलब्ध न हो, तभी यह विधि अपनानी चाहिए। उपर्युक्त विधियों व प्रक्रियाओं में दो चीजें महत्त्वपूर्ण है। एक है कर्ता For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.006761
Book TitleScience of Dhovana Water
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJeoraj Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2012
Total Pages268
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size13 MB
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