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________________ 1.b) 흐 1.c) 1.d) 2. ii) पानी को ठंडा करने का गुणधर्म खो बैठता है । यदि घड़ा अच्छे से रगड़ा नहीं जाता है, तो घड़े के छिद्र तो जल्दी बंद नहीं होते हैं, लेकिन उन छिद्रों में अदृश्य काई पैदा होना शुरू हो जाती है। घड़े की अंदर की सतह जब काई से काली होना शुरू होती है, तब तक काफी समय से छिद्रों में हो चुकी होती है। दूसरा तरीका है घड़े को धूप में एक दिन रखकर सूखाना तथा दो घड़े रख कर एकान्तर दिन में उनका उपयोग करना । एकान्तर दिन से सूखाने से घड़े को खाली कर, रात्रि भर सूखने के लिए उल्टा रख दिया जाए । सुबह में घड़े में अचित्त पानी भरते वक्त उसमें थोड़ा सा पोटेशियम परमेंगनेट जैसा रोगाणुनाशी पदार्थ (दो बूंद ) मिला देना चाहिए । यह ऑक्सीकारक पदार्थ है जो रोगाणुओं को नष्ट करता है तथा धोवन आदि पानी को पीने योग्य अचित्तावस्था में बनाये रखता है। विशेषकर बारिश के दिनों में इसके प्रयोग की अनुशंसा की जाती है। एक अन्य परिस्थिति पैदा होती है जब या तो हम उपरोक्त सावधानियों से परिचित नहीं हों या घड़ों को रगड़ कर धोने और सूखाने में लापरवाही बरतते हों, तथा घड़े के छिद्रों में और उनकी भीतरी सतह पर काई जमा होने देते हैं। घड़े की सतह काली या हरी दिखाई देने लगती हैं। हमारी असावधानी से यह काई अचित्त पानी के साथ, हमारे पीने में, अंश रूप में जा सकती है। यह साधकों के लिए ऐषणीय नहीं है । काई केवल संसर्ग मात्र से अचित्त पानी को भले सचित्त नहीं बनाती हो, लेकिन इससे घड़ा फिर कई प्रकार की काई या लीलन - फूलन पैदा होने का मजबूत गढ़ बन जाता है। शुरू में काई अदृश्य रह सकती है। यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकती है। इन सब संभावनाओं के मद्दे नजर, एक साधारण श्रावक को जहाँ तक बने, मिट्टी के घड़ों में धोवन या उबाला पानी नहीं रखना ही उचित है । साधारण श्रावक का मतलब उनसे है जो घड़ों को काई - मुक्त रखने की उचित सावधानियाँ नहीं बरत सकते हैं। चूँकि उबला पानी शुरू में ऑक्सीजन मुक्त होता है, अतः घड़े की भीतरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006761
Book TitleScience of Dhovana Water
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJeoraj Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2012
Total Pages268
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size13 MB
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