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सतह पर काई जमने की संभावना कम रहती है। लेकिन कुछ घंटे बाद जब ज्यादा हवा उसमें घुल जाती है, तो काई पैदा होने की सम्भावना शुरू हो जाती है।
अतः इन सम्भावनाओं से निपटते हुए यदि घड़ों में पानी रखना ही है तो उनको हर रात्रि में खाली करके सूखाने के लिए उल्टा रखने का विवेक रखना होगा। दो घड़े रख कर, उसमें से एक घड़े को 36 घंटे तक सूखाने की पद्धति ज्यादा विश्वसनीय है। ऐसे सूखे हुए घड़े में फिर 1 दिन का अचित्त पानी भरना चाहिए। प्रश्न : 11 ओझोन या पराबैंगनीय किरणों से संसाधित किया हआ पानी, जो
बाजार में मिनरल पानी के नाम से मिलता है, क्या अचित्त पानी की श्रेणी में आता है। क्या जैन साधु या व्रती श्रावक उसे पीने के काम में
ले सकता है? उत्तर : यह प्रश्न वर्तमान समय में उत्पन्न हुआ है। अतः आधुनिक वैज्ञानिक
सिद्धांत की जानकारी से इसका विश्लेषण करना समीचीन होगा। इस मिनरल पानी को, बोटल में भरने के पहले, बैक्टेरिया-मुक्त बनाने के लिए उस पर कुछ अभिक्रियाएँ की जाती है। पराबैंगनी किरणों से पानी को जीवित बैक्टेरिया से मुक्त किया जा सकता है। लेकिन इन किरणों से पानी के शरीर की संरचना टूटने की सम्भावना नहीं लगती है। अतः पानी सचित्त रूप में ही रह जाता है। इसमें ऑक्सीजन की मात्रा में भी बदलाव नहीं आता है। यदि बैक्टेरिया मारने की प्रक्रिया में ओजोन गैस की मात्रा बढ़ा दी जाये, तो वह पानी में घुली हुई ऑक्सीजन की कुछ मात्रा को हटा सकती है। लेकिन 100% हटाने की कोई सम्भावना नहीं है, क्योंकि उस स्थिति में ओजोन खुद स्वास्थ्य के लिए हानिकारक बन सकती है। अतः वह पानी सचित्त पानी की श्रेणी में ही आता है, हालांकि उसे बैक्टेरिया, लीलन-फूलन आदि गंदगी से मुक्त कर दिया जाता है।
अतः त्यागी श्रावक के लिए यह अनुपयुक्त ही रहता है। प्रश्न 12 : क्या व्रती श्रावक उस धोवन या उबले पानी को उपयोग में ले सकता
है, जो ठंडा करने के लिए फ्रिज में रखा गया हो। उत्तर : यह समस्या भी पुराने जमाने में नहीं थी। उस समय फ्रिज थे ही नहीं।
___ अतः इसका उत्तर हम आधुनिक विज्ञान के सिद्धांतों का सहारा लेकर
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