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तिविहार का पच्चक्खाण करने वाले श्रावक लोग, जिनको सचित्त पानी का त्याग रहता है, सूर्यास्त के पूर्व ताजा धोवन बना लेते हैं। सुबह में बनाया धोवन रात्रि के दूसरे प्रहर में (सूर्यास्त के 3 घंटे बाद) काम में नहीं लिया जा सकता, क्योंकि वह फिर से सचित्त हो जाता है। थोड़ी सी राख या 1-2 बर्तनों के धोने से या 2-4 लौंग या विजातीय पदार्थ की अपर्याप्त मात्रा से बना धोवन 100% अचित्त नहीं हो पाता है। क्योंकि उसका रंग, रस और स्पर्श सूक्ष्म स्तर पर नहीं बदल पाता है। वायु का तापक्रम और नमी बढ़ जाने से पानी के जीव जल्दी पैदा होने की संभावना बढ़ जाती है। इसी के कारण अचित्त पानी की काल-मर्यादा कम हो जाती है। चूंकि फ्रिज मे हवा ज्यादा ठंडी और नम रहती है, अतः उसमें रखे पानी का अचित्तपना ज्यादा देर तक नहीं रहता है। अतः धोवन या उबले पानी को फ्रिज में नहीं रखने का विवेक रखना चाहिए। बर्फ तो सचित्त पानी की श्रेणी में आता है। यदि उसे दूध या रस में मिलाया जाता है, तो चे भी सचित्त बन जाते हैं। कम से कम बर्फ के पिघलने के 1/2 घंटे बाद तक तो वे सचित्त ही रहते हैं। फिर उसके बाद मिश्र स्थिति में आ सकते हैं। तथा अच्छी तरह से हिलाने के बाद, हो सकता है अचित्त बन जायें। यह संदेह की स्थिति बर्फ की मात्रा पर
भी निर्भर करती है। प्रश्न 10 : क्या धोवन या उबले पानी को मिट्टी के घड़ों में रखा जा सकता है? उत्तर : यदि घड़ों में पानी लम्बे समय तक बिना हलचल के रह जाता है, तो
उसमें काई आदि निगोदिया जीव पैदा होने की संभावना बढ़ जाती है। इसके परिप्रेक्ष्य में श्रावक को अपना विवेक काम में लेना है। इसमें 4 प्रकार की स्थितियाँ बनती हैंपक्की सावधानी बरतते हैं, जिससे लीलन-फूलन, काई आदि पैदा हों। जैसे :i) घड़े को हर सुबह अन्दर और बाहर से खूब रगड़ कर
धोना। लेकिन कुछ दिनों बाद घड़े के छिद्र रोजाना रगड़ने के कारण बंद हो जाते हैं। इससे घड़ा जल्दी ही
1.a)
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