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साँस में ली गई हवा में जितनी ऑक्सीजन होती है, उसका करीब 5% भाग ऑक्सीजन मूलक के रूप में बदल जाता है। साँस की तरह, पीने के पानी में जितनी हवा घुली रहती है, उसमें प्राप्त प्राणवायु भी मूलकों में परिवर्तित हो जाती है। मूलक बहुत अभिक्रियाशील होते हैं। ये न्यूक्लिायाइक अम्ल, लिपिड्स आदि का प्रतिघात कर सकते हैं। इससे निरोधात्मक शक्ति क्षीण हो कर या प्रतिरक्षक तंत्र कमजोर हो कर, अपकर्षक बीमारियाँ हो जाती है। उबालने या धोवन पानी बनाने से इस मूलकों से छुटकारा मिल जाता है। इन प्रक्रियाओं में इस स्वतंत्र मूलकों का सफाया हो जाता है तथा नया मूलक नहीं बन पाता है। अतः वैसा पानी पीने से टिस्सूओं के ऑक्सीडेटिव (Oxidative) क्षरण या नुकसान से छुटकारा मिल जाता है। राख के पाउडर (क्षारीय) से जब धोवन पानी बनाया जाता है, तब भी स्वच्छंद मूलक नष्ट हो कर, एकल ऑक्सीजन बन सकती है। ऐसे पानी के प्रयोग से बीमारी-मुक्त जीवन पद्धति जीने में सहायता मिलती है। आवेशों पर कंट्रोल रहता है। यह जीन संबंधित बदलाव से तथा उससे जुड़ी बीमारियों से छुटकारा दिलाता है। धोवन में जैविक कोषाणुओं की गंदगी तो बिल्कुल नहीं रहती। अतः वह सुभक्ष्य हो जाता है।
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