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प्रश्न
5:
उत्तर:
कुछ समय उपरांत सड़न पैदा होने लगती है। अपनी कालमर्यादा के पश्चात् जब यह पानी पुनः उबालकर अचित्त बनाया जाता है, तो मृत शरीर उबलने से विषैले व अभक्ष्य बन सकते हैं। जबकि धोवन पानी में विजातीय क्षार के उपयोग के कारण पुनः धोवन विधि के उपयोग में लाने से भी, पूर्व के मृत शरीर सड़ते नहीं हैं। उनको विषैले बनाने की उबलने की क्रिया भी इसमें नहीं होती है। अतः धोवन पानी भक्ष्य ही रहता है। फिर भी यह धोवन बनाने के पूर्व के सचित्त पानी की गुणवत्ता पर निर्भर करता है। उसका विवेक रखना चाहिये। कुछ प्रकार के सूक्ष्म बैक्टेरिया धोवन बनाने के बाद बदबू देने लगते हैं। उस तरह के पानी का उपयोग पीने के बजाय धोने आदि दूसरे काम में लेना चाहिये । क्योंकि वह अभक्ष्य बन सकता है। क्या सचित्त पानी की काया से भी जैविक फोटोन का उत्सर्जन होता है? नई खोज के अनुसार, जैविक फोटोन (बायो फोटोन) को एक सशक्त प्रकाश के रूप में माना जाता है, जो कि सचित्त पदार्थ में उत्सर्जित हो सकता है। कुछ परिस्थितियों में यह पानी के एक विशेष प्रकार में दृष्टिगोचर हुआ है। ऐसा प्रतीत होता है कि ये फोटोंस पानी की योनि में सोमेटिड्स (Somatids) के रूप में उसके एक छोर पर जुड़ जाते हैं या वहाँ पर उत्सर्जित होते हैं। ऐसे विशेष प्रकार के पानी में, त्रसकाय के जीव पैदा नहीं होते हैं। ऐसा एक पानी है सघन ग्रांडेर पानी। यह पानी विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र में उसके प्रवाह में अंतर्वलयित टर्बलेंस पैदा करके बनाया जाता है। ऐसे गुण वाला दूसरा पानी देखने में आया है ऊपरी गंगा नदी में। इन दोनों पानी को बहुत दिन तक बंद रखने के बाद भी ये किसी भी त्रसकाय के जीवों से रहित पाये गये हैं। इनकी योनि त्रसकाय के जीवों को आश्रय
नहीं देती है। इस विषय पर और शोध करने की आवश्यकता है। प्रश्न 6 : क्या गंदा पानी फिर से सचित्त बन सकता है? उत्तर : मोटे तौर पर गंदा पानी दो तरह का होता है। एक परकायिक जीवों
की उपस्थिति के कारण । इनकी मात्रा बढ़ने से तथा विशेष प्रकार के जीव पैदा होने से यह अचित्त पानी भी अभक्ष्य बन जाता है। दूसरा गंदा पानी होता है विजातीय तत्त्वों की उपस्थिति के कारण। यह पानी
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