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________________ (H-9) "सचित्त / अचित्त पानी के विभिन्न पहलू' (प्रश्नोत्तर) जैन आगमों में बड़े ही विस्तृत रूप से पानी को अचित्त बनाकर पीने के काम में लेने की व्यवस्था बताई गई है। इसमें अभी तक परिग्रह और हिंसा के अल्पीकरण के विकास की भावना का पक्ष स्पष्ट रूप से समझ में आ रहा था। लेकिन अब जो ‘सचित्त-अप्काय' की वैज्ञानिक परिकल्पना विकसित हो रही है, तो प्रश्न उठता है कि क्या यह परिकल्पना अचित्त पानी बनाने की विभिन्न विधियों तथा उनसे जुड़ी अनेक जिज्ञासाओं व शंकाओं का समाधान प्रदान करने में सक्षम है? कुछ साधु व श्रावक समाज द्वारा, इसके विभिन्न पहलुओं के बारे में उठाई गई जिज्ञासाओं का समाधान, इस परिकल्पना के आधार पर नीचे प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। प्रश्न 1: सचित्त पानी को अचित्त बनाने के लिये जैन आगम में क्या उपाय बताये गये हैं ? उनका कोई वैज्ञानिक आधार बनता है क्या? उत्तर : पानी को अचित्त बनाने के 23 उपाय बताये गये हैं। मिश्रण बनाना : स्वकाय शस्त्र से अचित्त बनाना। यानि एक किस्म के पानी को दूसरे प्रकार के पानी से मिश्रित करना । उदाहरण स्वरूप बताया गया है कि यदि एक कुएँ के पानी को तालाब के पानी में मिलाया जाये, तो वह अचित्त हो जाता है। इनमें अलग-अलग प्रकार के पदार्थ घुले हुए होते हैं, जिससे वे एक दूसरे की संरचना को तोड़ कर, कुछ समय के लिये, सचित्त से अचित्त बन जाते हैं। जितने अच्छे ढंग से वे मिश्रित होते हैं, उतने ही ज्यादा कारगर ढंग से एक दूसरे को अचित्त बना सकेंगे। उबालना : परकाय शस्त्र से अचित्त बनाना। जैसे पानी को अग्निकाय पर रखकर उबालना। उबालने पर पानी शत-प्रतिशत अचित्त बन जाता है। सचित्त अपकाय की वैज्ञानिक परिकल्पना के अनुसार पानी की योनियाँ (षष्टिनुमा रवों से बनी बास्केटबॉल के गोल की नेनो-जाली) उबलने के तापक्रम पर नष्ट हो जाती है। जिससे पानी अचित्त हो जाता है। इसके अलावा, उस पानी में घुली हुई संपूर्ण हवा निष्काषित हो जाती है। फलस्वरूप पानी के जीव की श्वासोच्छवास क्रिया बंद हो जाती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006761
Book TitleScience of Dhovana Water
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJeoraj Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2012
Total Pages268
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size13 MB
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