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(H-8)
धोवन और अकर्मक अवस्था
एक मुद्दा, जो बार बार युवाओं द्वारा उठाया जाता है, उस पर एक बार फिर से चिन्तन कर लेना समीचीन होगा। हालांकि इसमें पुनरावर्तन तो है, फिर भी इसकी अहमियतता के मद्देनजर, इसके विभिन्न पहलुओं को नीचे दिया जा रहा है। प्रश्न:- हम लोग अभी तक यह मानते रहे हैं कि गर्म करके पानी पीना आगम
सम्मत है। अब आधुनिक कहे जाने वाले लोगों ने तर्क रखा है कि उबालने में कोई बुद्धिमानी नहीं है। धोवन बनाने व उबालने से जीव तो मरते ही हैं, फिर अचित्त बनाकर पीने से क्या फायदा है? इनको हम अहिंसक कैसे मान सकते हैं? वो अपने आपको यह बताने में कि आगमानुसार "पण्णा सम्मिक्खए" यानि अपनी 'प्रज्ञा से आगम की समीक्षा कीजिए, का सहारा लेकर अपने आपको ज्यादा तार्किक और आधुनिक बता रहे हैं। गर्म करके महा हिंसा मत कीजिए। गर्म करना महा हिंसा का कारण है, अतः जब धोवन
का विकल्प मौजूद है, तब तो उसे छोड़ देना ही चाहिए। उत्तर : - a) हम क्या करते हैं? हम छानकर घड़े में पानी भरते हैं - तो पानी का
सीमाकरण हो जाता है। (7वाँ व्रत)। लेकिन चूंकि नल पास में मौजूद है, अतः व्रत खुला रह जाता है। धोवन व उबालने की प्रक्रिया लम्बी है, उसके लिए मात्रा सोच समझकर तय की जाती है। कच्चा पानी उपयोग में
लेने से:1. साधारणतया मात्रा निश्चित नहीं होती है। 2. पानी के जीव डरते रहते हैं। उनमें आपसे भय रहता है । 3. असंख्य जीव पैदा होते/मरते हैं। व्यवहार नय से हमें दोष लगता है।
(निमित्त) 4. हर समय पानी में गिलास डालने से बार-बार उन्हें कष्ट होता है। 5. उबालने से बार-बार के प्राणातिपात से बच जाते हैं। b) तर्क और आधुनिकता:1. हिंसा का निमित्तः- कच्चा पानी जब घर में एक घड़े में भर कर रखा जाता
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