________________
7. सारांशः (i) इस प्रकार अत्यधिक घुलनशीलता वाले या कम मात्रा से ही रंग बदलने की
क्षमता रखने वाले पदार्थ, धोवन बनाने के लिए अनुपयुक्त माने गये हैं। इसका एक कारण है कि इन पदार्थों का पानी में संतृप्ति बिन्दु अधिक होने के कारण, "अवक्षेपण" के रूप में मापदण्ड तय नहीं किया जा सकता, जो कि व्यवहार दृष्टि से संशय से परे रहने का साधकों के लिए आसान तरीका होता है। जो पदार्थ (कषैले पदार्थ) मुश्किल से घुलते हैं, लेकिन जो पानी के रंग को अपनी थोड़ी सी मात्रा से ही बदलने की क्षमता रखते हैं, उनकी सही मात्रा को भी निश्चित रूप से बता पाना मुश्किल रहता है। अतः ऐसे पदार्थों को
अचित्त पानी बनाने के लिए अनुपयुक्त माना गया है। (iii) व्यवहार में कुछ आचार्यों ने श्रावकों के लिए बताया है कि 10 लीटर पानी में
कितना लौंग, त्रिफला पाउडर आदि पोटली में डाल कर 1 मिनट तक खूब हिलायें । या इतना चिमटी चूना डाल कर हिलाएं। फिर इतने मिनट (आधा घंटा आदि) बाद ही उसे अचित्त धोवन माना जाये। कुछ आचार्य चूने का घोल पानी बनाकर उसे निथार लेते हैं। ऊपर का निथारा हुआ क्षीण चूने का पानी धोवन बनाने में उपयोग में लिया जाता है। उस पानी को घड़े के पानी में मिलाकर हिलाया जाता है। फिर 25 या 30 मिनट के समय के बाद उस घड़े के पानी को अचित्त माना जाता है।
इन सबका वैज्ञानिक प्रयोगों द्वारा प्रामाणिक आधार प्राप्त करके, संशयात्मक स्थिति से निपट लेना अति आवश्यक लगता है। पिछले कुछ वर्षों में हुई शोध से यह संभव हो सकता है। जरूरत है विश्वास के साथ वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखने की और वैज्ञानिकों को सामूहिक रूप से समुचित प्रोत्साहन देने की।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org