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________________ 4. मिट्टी : मिट्टी को भी शस्त्र रूप नहीं माना गया है, क्योंकि उसे भी पानी का जन्म स्थान माना गया है। मिट्टी तो पानी में अत्यधिक मात्रा में भी घुल सकती है। साधक लोग व्यवहार दृष्टि से, मिट्टी घुले हुए पानी को, अचित्त धोवन नहीं मानते हैं। कई जगह के बोरिंग के पानी में काफी मात्रा में चिकनी मिट्टी घुली रहती है, जैसे हावड़ा आदि जगह पर । हो सकता है उतनी मिट्टी के घोलने से पानी अचित्त बन सकता हो । हालांकि बोरिंग का पानी तो भीतर में बहुत अर्से तक मिट्टी को घोल कर रहता है, जो बाहर आने पर कुछ समय पश्चात काफी मात्रा में अवक्षेपित हो जाती है। फिर भी मिट्टी से उसको व्यवहार सचित्त मानना ही उचित लगता है । आधुनिक यंत्रों द्वारा जरूर पता लगाया जा सकता है कि अमुक पानी अचित्त धोवन बना या नहीं | SiO2 / बालू को शस्त्र नहीं माना गया है। 5. चूना [Ca(OH)2] यह राख से भी तेज शस्त्र माना गया है । थोड़ी सी मात्रा से धोवन बन सकता है। लेकिन मात्रा का माप संशयात्मक रहता है। इसके तेज को कम करके यानि निथार कर, क्षीण चूने का उपयोग किया जाता है। तेज रहने से जिव्हा या पेट पर दुष्प्रभाव पड़ सकता है । व्यवहार में "सही मात्रा" का उपयोग तथा उसकी क्षीणता की डिग्री आदि का वास्तविक मापतोल संभव नहीं रहता है । यह कोलोइड भी शीघ्र बना लेता है तथा इसकी घुलनशीलता भी अत्यधिक होती है। अधिक घुलनशील पदार्थों की सही मात्रा सुनिश्चित करने का भी कोई मानक नहीं रहता है। जैसा कि राख में अवक्षेपण होने पर पानी का अचित्त होना मान लिया जाता है। राख की महीनता भी प्रायः एक सी रहती है । अतः राख जैसी चूने की प्रामाणिक मात्रा को बता पाना व्यवहार सम्मत संभव नहीं है। हाँ, आधुनिक यंत्रों का प्रयोग करके चूने की सही मात्रा को, उसकी क्षीणता के अनुसार मापी जा सकती है लेकिन यह तरीका अभी प्रयोगात्मक स्टेज पर ही है 6. दूध (Milk) : यह कोलोइड है तथा एक अनुकूल रस की श्रेणी में आता है । पानी में उसकी असीमित घुलनशीलता है । यह स्वयं शरीर के रूप में रहता है, न कि आणविक रूप में। तथा पानी के शरीरों के बीच में समशील या समरूप मिश्रण बनाता है। इसके बर्तन के साथ पानी को रगड़ कर धोने से पानी का शरीर टूट जाता है तथा अचित्त धोवन बन सकता है। यह पानी के रंग को जल्दी बदल सकता है (कम मात्रा से भी) तथा “अवक्षेपण " का तो प्रश्न ही नहीं उठता है । अतः व्यवहार दृष्टि से दूध को धोवन बनाने के लिए अनुपयुक्त माना गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006761
Book TitleScience of Dhovana Water
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJeoraj Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2012
Total Pages268
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size13 MB
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