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स्वादके भेदः स्वाद
उदाहरण 1. तीखा
मिर्च (चरका), सौंठ, पीपर कड़वा
नीम, करेला, चिरायता 3. कषैला - आंवला, हरड़े, कत्था, कबीर 4. खट्टा - अम्लीय पदार्थ 5. मीठा
चीनी आदि साधारणतया यह मिट्टी और पानी से ही निकलता है। प्राचीन काल से ही इसे “शस्त्र" के रूप में नहीं माना गया है। चूंकि पानी इसके जन्म स्थान के रूप में है, इसलिये भी इसे शस्त्र की श्रेणी में नहीं रखा गया है। साधक लोग व्यवहार दृष्टि से इसका उपयोग नहीं करते हैं। हालांकि हो सकता है कि यह पानी को अचित्त बना सकता है। नमक पानी में जाकर जलयोजन आवरण बनाता है, न कि सीधा पानी के शरीर के छिद्रों में जाकर जमता है। ज्यादा मात्रा में घोलने पर ही उपरोक्त क्रिया होती होगी, जिससे पानी अचित्त बन जाता है। 3. कषैले स्वाद वाले पदार्थ (त्रिफला, हरड़े, आँवला, कत्थाआदि)
ये सभी मंद शस्त्र माने गये हैं। इनको खाने के बाद पानी स्वादिष्ट या मीठा लगता है। हालांकि स्वयं प्रतिकूल स्वाद वाले होते हैं। तथा थोड़ी सी मात्रा के उपयोग से पानी का रंग शीघ्र ही बदल जाता है। अतः काम में ली हुई इनकी मात्रा का सही अंदाज नहीं लगता है। निर्णय संशयात्मक रहता है। बहुत ज्यादा मात्रा को महीन पीस कर 'घोलने' से पानी के शरीर के सारे छिद्र बंद हो सकते हैं। लेकिन पाउडर को कितना महीन बनाया गया, कितनी मात्रा का उपयोग हुआ, और यदि अवक्षेपण हुआ भी तो संतृप्ति बिन्दु तक पहुँचने पर हुआ या स्थूल कणों के कारण हुआ, आदि संशयात्मक स्थिति पैदा करते हैं। अतः व्यवहार दृष्टि से इनके उपयोग की अनुशंसा नहीं की जाती है, हालांकि 500 mesh जैसे सूक्ष्म कणों के प्रयोग से अच्छा कोलोइड (colloid) बन सकता है। तथा पानी का क्वाथ के रूप में अचित्त धोवन बन सकता है। लेकिन अवक्षेपण नहीं होने के कारण सही मात्रा के उपयोग का अन्दाज नहीं लगता है। अतः साधक इनको व्यवहार दृष्टि से अपने लिए अनुपयुक्त मानते हैं तथा संदेह से परे रहना पसंद करते हैं।
आधुनिक प्रयोगों द्वारा अचित्त धोवन बनाने के लिए इनके आकार और सही मात्रा को निश्चित करना सम्भव हो सकता है। वैसे मधुर पश्च स्वाद के कारण भी इसका उपयोग नहीं करते हैं।
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