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(H-7)
धोवन के लिए अनुपयुक्त पदार्थों का
विस्तार से विश्लेषण
जब घर, रसोई में सहज बनने वाले धोवन पानी से आवश्यकता की पूर्ति संभव नहीं हो तो राख आदि से अचित्त धोवन बनाना पड़ता है। लेकिन 'प्रासुक धोवन' बनाने के लिए 'व्यवहार' में आचार्यों ने कई सामान्य पदार्थों को अनुपयुक्त माना है। इसका क्या कारण है? ।
चीनी, नमक, त्रिफला आदि कुछ कषैले पदार्थ व चूना, दूध आदि की थोड़ी सी मात्रा के प्रयोग से पानी का स्वाद, रंग आदि बदल जाता है। फिर भी साधक लोग इनके प्रयोग से बदले हुए पानी को प्रासुक धोवन मानने में हिचकिचाते हैं। इनका संतृप्ति बिन्दु बहुत ऊँचा होता है। अवक्षेपण होने के लिए बहुत अधिक मात्रा की जरूरत होती है। अवक्षिप्त नहीं होने से स्थिति संशयात्मक रहने के कारण इनको अनुपयुक्त पदार्थ मानते हैं। 1. चीनी:
यह एक विशिष्ट रसायन है। यह पानी को मधुर रस प्रदान करती है जो इन्द्रिय प्रिय होता है। यह मंद रस है। इसकी घुलनशीलता बहुत ज्यादा होने के कारण संतृप्ति तक पहुँचने में अत्यधिक मात्रा की जरूरत पड़ती है। यह मंद शस्त्र है।
ज्यादा शक्कर घुल जाने से पानी अचित्त तो हो जाता है, लेकिन अचित्त बनाने के लिए जरूरी मात्रा का निर्णय कर पाना व्यावहारिक व सरल नहीं है। अतः व्यवहार में संशय बना रहता है। सर्वसम्मति यह है कि गाढ़ा शर्बत जरूर अचित्त होता है। शेष प्रकार के घोल का निर्णय करना मुश्किल है। वैसे इन्द्रिय प्रिय मधुर घोल होने के कारण व्यवहार दृष्टि से भी इसको धोवन की श्रेणी में नहीं रखा गया है। क्योंकि इन्द्रिय निग्रह के स्थान पर इन्द्रिय आसक्ति का यह कारण बन सकता है। अतः साधक लोग व्यवहार दृष्टि से उसका उपयोग नहीं करते हैं। 2. नमकः
कुछ आचार्यों ने नमक में पाँचों ही स्वाद का मिश्रण माना है।
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