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________________ परकायिक क्रिया : पानी में परकाय यानि दूसरे पदार्थ मिलाकर भी धोवन बनाया जा सकता है। पानी में राख, लौंग, त्रिफला आदि मिलाने से सचित्त पानी अचित्त बन सकता है। इसके लिए राख को सबसे ज्यादा कारगर और उपयुक्त माना गया है। चूने से भी पानी शीघ्र और कारगर तरीके से अचित्त बन सकता है। लेकिन इनकी कितनी मात्रा मिलाने से कितना पानी अचित्त बनता है, इसका एक सरल और व्यावहारिक उपाय होना जरूरी है। एक दो चिमटी राख घड़े भर पानी में घोलकर धोवन बनाना सही नहीं है। वह केवल सचित्त घोलन की श्रेणी में ही रह जाता है। ज्यादा तर राख हल्की क्षारीय या उदासीन होती है। इसमें कीटाणुओं की उत्पत्ति नहीं होती है। कुछ राख की मात्रा पानी के नीचे जम जाय तो समझ लिया जाता है कि राख की उपयोग में लाई मात्रा काफी थी। चूने के ऊपर के पानी को निथार कर, उससे कई लोग अचित्त धोवन बनाते हैं। त्रिफला की मात्रा का भी सही अंदाज नहीं लगता है, क्योंकि उसकी बहुत ही कम मात्रा से भी पानी का रंग बदल जाता है। जब कि राख और चूना कम खर्चीले और आसानी से उपलब्ध होने वाले पदार्थ हैं। पानी का पूर्ण प्रकार से वर्ण, गंध, रस, स्पर्श बदले बिना धोवन नहीं होता है। उबालनाः पानी को 90°C से ऊपर उबालकर भी अचित्त बनाया जाता है। साथ में यह हिदायत दी जाती है कि 3 उकाला आ जाय। इससे, पूरा गर्म हुआ या नहीं, इसका संशय निकल जाता है। हालांकि यह नैसर्गिक क्रिया से अचित्त बना हुआ तो नहीं माना जा सकता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006761
Book TitleScience of Dhovana Water
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJeoraj Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2012
Total Pages268
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size13 MB
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