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________________ जीव-अजीव का विवेचन आधुनिक विज्ञान में 'जीव' की परिभाषा इस प्रकार की गई है - 1. जिसमें ऊर्जा का आदान-प्रदान हो सके, यानी ऊर्जा को आबद्ध ___ (Fix) करके निर्दिष्ट दिशा में अंतरण (Transfer) कर सके, तथा2. जिसमें स्मरण रखने की तथा सूचना प्रसारण की क्षमता हो, वह जीव है। प्रश्न यह है कि अप्काय के उपर्युक्त भौतिक कोषाणु की क्या स्थिति बनती है? (1) उपर्युक्त कोषाणु की संरचना में हमने देखा कि ऊर्जा का आदान-प्रदान होना तो स्पष्ट संभव है। यहाँ तक कि उसके खोखले आकाश (Space) में सक्रिय संतुलन में रह रहे वायु के अणुओं/मूलकों के आवागमन से तो ऐसा अहसास होता है कि कोई श्वासोच्छवास जैसी क्रिया सम्पन्न हो रही हो। फिर तो जब यह सोखी हुई हवा इस पानी से बाहर निकाल दी जाये (जैसा कि पानी को उबालने पर होता है) तो वह पानी सजीव से निर्जीव बन जायेगा । यह निष्कर्ष आगम वर्णित जैन विज्ञान की उस मान्यता को सिद्ध करता है कि कच्चे पानी को उबालने से वह अचित्त हो जाता है तथा सचित्त के त्यागियों के लिए ग्रहण करने योग्य बन जाता है। यह उबाला हुआ पानी जब हवा में कुछ समय तक पड़ा रहे तो आसपास की हवा को फिर से सोखना शुरू कर देता है। भिन्न-भिन्न ऋतुओं में, अलग-अलग अवधि में यह इतनी हवा सोख लेता है कि वह फिर से सचित्त बनना शुरू हो जाता है। इसी सिद्धान्त के आधार पर आगमों में, आश्चर्यजनक रूप से, उबाले पानी के अचित्त रहने की अवधि का स्पष्ट उल्लेख भी कर दिया गया है। (2) लेकिन यह कोषाणु ‘स्मृति' रखने की क्षमता रखता है, यह कैसे मालूम हो ? विगत कुछ वर्षों में स्विस रसायनशास्त्री लुइस रेय, फ्रेंच वैज्ञानिक जेक्स बेन्वेनिस्टे तथा कोरियाई टीम (कुर्ट गोक्लर आदि) ने “पानी की याददाश्ती" पर अध्ययन और शोध करके इसकी प्रामाणिकता को प्रतिपादित करने का प्रयास किया है। होम्योपैथी की दवा सजीव जलकाय की खोज और प्रामाणिकता के लिए हम होम्योपैथी की पानी या अल्कोहल आधारित दवा के आधुनिक सिद्धान्त का अध्ययन और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006761
Book TitleScience of Dhovana Water
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJeoraj Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2012
Total Pages268
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size13 MB
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