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________________ 36,450 त्रसकाय के जीवों के आधार पर, लोगों को यह कहना कि आज-कल विज्ञान भी पानी में असंख्य जीव मानने लगा है और इसीलिए आगम के अप्काय की मान्यता सही है, एक भ्रामक और अश्रद्धा पैदा करने वाला तर्क है। हाँ, इतने सकाय के जीवों के आधार पर यह राय दे सकतें हैं कि पानी को छान कर पीयें । v) यहाँ यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि यदि बुजुर्ग लोग धर्म को 'वैज्ञानिक' मानते हैं, तो फिर विज्ञान से ऐसा मनवाने का, क्यों नहीं कोई प्रयास किया गया? क्यों कोई व्यक्ति, समाज के इस प्रमाद को तोड़ने में सफल नहीं हुआ ? अतः जैनी लोग इतना ही कह सकते हैं कि आगमानुसार पानी भी एक स्थावर काय का जीव होता है ब) वैज्ञानिक शोध के प्रयास सन् 2003 में यह समझने का वैज्ञानिक प्रयास शुरू हुआ कि पानी का ऐसा जीव किस प्रकार का हो सकता है, जिसकी पानी ही काया हो । प्रश्न था कि गर्म करने से या धोवन बनाने से वह कैसे और क्यों निर्जीव हो जाता है ? कुछ समय बाद यह फिर से जिंदा या सचित्त कैसे हो जाता है? सतत् प्रयास व प्रयोगों द्वारा इन सबकी वैज्ञानिकता ढूंढते ढूंढते, 7 साल बाद यह स्थिति तो आ गई है कि अब जैन समाज, विज्ञान को उसकी भाषा में ही यह बता सकता है कि अप्काय का जीव किस प्रकार का होता है? यानि उसकी संरचना किस प्रकार की है, कैसे जीवित रहता है आदि । अब तो यंत्रों के माध्यम 1 से यह बताना भी संभव हो गया है कि कोई पानी का नमूना अचित्त है या सचित्त है। पानी के जीव का जो प्रतिरूप तैयार किया गया तथा जो परिकल्पना (hypothesis) रखी गई थी, उसका स्वतंत्र रूप से प्रमाणीकरण कराने का भी प्रयास किया गया। इसके लिए एक अन्य वैज्ञानिक की सहायता लेकर, प्रयोगों का पुनरावर्तन कराया गया। इस साल (सन् 2010), उनके द्वारा भेजे फोटोग्राफ्स भी, उपरोक्त सिद्धांत को अभिपुष्ट (validate) करते हैं। अतः आगम सम्मत जीवन की एक नूतन अवधारणा से विज्ञान को अवगत कराया जा सकता है। हो सकता है कि जैन सिद्धांत की यह प्ररूपणा, विज्ञान को, एक बड़ी क्रांतिकारी देन सिद्ध हो । Jain Education International (x) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006761
Book TitleScience of Dhovana Water
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJeoraj Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2012
Total Pages268
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size13 MB
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