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________________ अ) जैन धर्म की वैज्ञानिकता : हम सभी गर्व से यह कहते नहीं थकते कि हमारा धर्म बहुत वैज्ञानिक है। लेकिन बच्चों को लगता है कि हम झूठा घमण्ड कर रहे हैं। क्यों कि स्कूल का एक जैन छात्र यह तो जानता है कि जैनी लोग पानी और अग्नि को जीव मानते हैं, लेकिन विज्ञान में पानी और अग्नि को जीव मानने की कोई भी अवधारणा नहीं है । कई साधुओं से या कुछ श्रावकों से यह कई बार सुनने को मिलता रहता है कि जैन विज्ञान के अनुसार पानी की एक बूंद में असंख्यात अप्काय के जीव होते हैं तथा अब तो विज्ञान भी मानता है कि "पानी की एक बूंद में 36,450 जीव होते हैं।" लेकिन यह एक बहुत ही भ्रामक और गलत उदाहरण है। इससे हमें आगम की आशातना ही लगती है । जल पर शोध का प्रयोजन और स्थिति वास्तव में एक खोजी ब्रिटानी युवक केप्टन स्कोर्सबी ने गंगा जल के एक नमूने का खुर्दबीन से निरीक्षण किया था। उस पानी के नमूने के एक जल बूंद में सकाय व वनस्पति काय के कुल 36,450 जीव देखे गये थे । यहाँ यह बात ध्यान में रखें कि i) ii) iii) iv) यह संख्या अलग-अलग प्रकार के पानी के नमूनों में अलग-अलग होगी। यहाँ तक कि "जीरो - बी" (फिल्टर पानी) में यह 'शून्य' भी हो सकती है। यह तथ्य विज्ञान और आगम दोनों को मान्य है । लेकिन जैन विज्ञान तो अप्काय के जीवों की संख्या की बात करता है । न कि उसमें घूम रहे सकाय के जीवों की बात करता है । यानि ऐसा जीव, जिस की पानी ही काया है। और ऐसे जीव की विज्ञान में अभी तक कोई भी अवधारणा नहीं है। यदि आज के शक्तिशाली खुर्दबीन से निरीक्षण करेंगे तो पानी के किसी नमूने में लाखों / करोड़ों जीव पाये जा सकते हैं। विज्ञान पानी को केवल एक साधारण रसायन HO ही मानता है । जीवन के लिए आवश्यक और मूलभूत कोई भी रसायन (DNA और RNA) उसमें नहीं होता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006761
Book TitleScience of Dhovana Water
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJeoraj Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2012
Total Pages268
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size13 MB
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