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Philosophy of Six Padas
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बंध-भाव के क्षीण हो सकने योग्य होने से उससे रहित जो शुद्ध आत्मभाव है, उस रूप मोक्षपद है। Fifth Pada - liberation is there. Just as through the unattributable actuality approach or anupacharite vyavahar, soul's doership of activities has been observed and through the doership the enjoyer status has been indicated, similarly the activities can also cease to exist. Even when passion for the activities is still there, the activities have been seen to lose force, are capable of losing force, can lose force through non-acknowledgement, nonpractice, and subsidence processes. Because it is possible to end the binding feeling of the activities, the state of pure self-concept devoid of the binding feeling is liberation.
__छठा पद : 'उस मोक्ष का उपाय है।' यदि क्वचित् ऐसा हो कि हमेशा कर्मो का बंध ही बंध हुआ करे, तो उसकी निवृत्ति कभी भी नहीं हो सकती। परन्तु कर्मबंध से विपरीत स्वभाववाले ज्ञान, दर्शन, समाधि, वैराग्य, भक्ति, आदि साधन प्रत्यक्ष हैं; जिस साधन के बल से कर्मबंध शिथिल होता है - उपशम होता है - क्षीण होता है; इसलिये वे ज्ञान, दर्शन, संयम, आदि मोक्ष-पद के उपाय हैं। Sixth Pada - there is a way for liberation. If the activities were binding by themselves, then freedom from them would never be possible. But counter to the binding nature of the activities, means like knowledge, perception, concentration, non-attachment, and devotion etc. are obviously there, with the prowess of which the bindings of the activities can weaken, subside, and cease to exist. The knowledge, perception, self-discipline etc., therefore, are the means for liberation.
श्री ज्ञानी पुरुषों द्वारा सम्यग्दर्शन के मुख्य निवासभूत कहे हए इन छह पदों को यहाँ संक्षेप में कहा है। समीप-मुक्तिगामी जीव को स्वाभाविक विचार में ये पद प्रामाणिक होने योग्य हैं, - परम निश्चयरूप जानने योग्य हैं, उसकी आत्मा में उनका सम्पूर्ण रूप से विस्तारसहित विवेक होना योग्य है। ये छह पद संदेहरहित हैं, ऐसा परम पुरुष ने निरूपण किया है। इन छह पदों का विवेक जीव को निज स्वरूप समझने के लिये कहा है। अनादि स्वप्न-दशा के कारण उत्पन्न
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