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Gandhi's Teachers : Rajchandra Ravjibhai Mehta
Third Pada - soul is doer. All substances are endowed with efficacious activities and activities of all the substances are seen to be associated with some results. Soul is also endowed with activities and because of the activities is a doer. Lord Jina has analyzed this doership as threefold: from the essential reality perspective the creator of own self through inner nature, 2) from the unattributable actuality approach or anupacharite vyavahar the doer of material karmas through specific relational associations, and 3) from the attributable reality approach the creator of house, city etc.
__ चौथा पद : 'आत्मा भोक्ता है। जो जो कुछ क्रियायें होती हैं, वे सब किसी प्रयोजनपूर्वक ही होती हैं - निरर्थक नहीं होती। जो कुछ भी किया जाता है उसका फल अवश्य भोगने में आता है, यह प्रत्यक्ष अनुभव है। जिस तरह विष खाने से विष का फल, मिश्री खाने से मिश्री का फल, अग्नि के स्पर्श करने से अग्नि-स्पर्श का फल, हिम के स्पर्श करने से हिम-स्पर्श का फल मिले बिना नहीं रहता, उसी तरह कषाय आदि अथवा अकषाय आदि जिस किसी परिणाम से भी आत्मा प्रवृत्ति करती है, उसका फल भी मिलना योग्य ही है, और वह मिलता है। उस क्रिया का कर्ता होने से आत्मा भोक्ता है। Fourth Pada - soul is enjoyer. All activities take place for a reason, not without any purpose. This also express experience that whatever is done, its results have to be borne. Just as one can not escape poisonous effect of eating poison, sugar's effect of eating sugar, fire's effect of touching fire, and ice's effect of touching ice, similarly due to whatever passionate or non-passionate modes soul engages in activities, it must beget the fruits and it does. As the doer of these activities, soul is enjoyer.
पाँचवाँ पद : ‘मोक्षपद है'। जिस अनुपचरित व्यवहार से जीवके कर्म का कर्तृत्व निरूपण किया और कर्तृत्व होने से भोक्तृत्व निरूपण किया, वह कर्म दूर भी अवश्य होता है; क्योंकि प्रत्यक्ष कषाय आदि की तीव्रता होने पर भी उसके अनभ्यास से - अपरिचय से - उसके उपशम करने से - उसकी मंदता दिखाई देती है - वह क्षीण होने योग्य मालूम होता है - क्षीण हो सकता है। उस सब
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