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श्रीशगुंजय-गिरिराज-दर्शनम्
ही गच्छों का है। किसी एक का नहीं है । लिखा, कमलकलशा मुनि भावरत्न ने ।
४ देवानन्द गच्छ के हारीजशाखा के भट्टारक श्रीमहेश्वरसूरि लिखितं-यथा (वाकी ऊपर ही के अनुसार )।
५ श्रीपूर्णिमापक्षे अमरसुंदरसूरि लिखितं-( ऊपर मुताबिक )
६ पाटडीयागच्छीय श्रीब्रह्माणगच्छनायक भट्टारक बुद्धिसागरसूरि लिखितं-ऊपर मुताबिक)
७ आंचलगच्छीय यतितिलकगणि और पण्डित गुणराजगणि लिखितं (ऊपर मुताविक) ८ श्रीवृद्धतपागच्छ पक्षे श्रीविनयरत्नसू रि लिखितं । ९ आगमपक्षे श्रीधर्मरत्नसू रि की आज्ञा से उपाध्याय हर्षरत्नने लिखा ।
१० पूर्णिमागच्छ के आचार्य श्रीललितप्रभ की आज्ञा से वाचक वाछाकने लिखा । यथा-शत्रंजय का मूल किला, मूल मंदिर और मूल प्रतिमा समस्त जैनो के लिये वन्दनीय
और पूजनीय है । यह तीर्थ समग्र जैन समुदाय की एकत्र मालिकी का है । जो जो जिनप्रतिमा मानते है उन सब का इस तीर्थ पर एक सा हक्क और अधिकार है । शुभं भवतु जैन संघस्य ।
इति चतुर्थो भागः
॥ श्रीशत्रुजयगिरिराजदर्शनं शिल्पस्थापत्यकलायां च शत्रुजयः
समाप्तः ॥
श्रीशत्रुजयतीर्थोद्धारप्रबंधे प्रस्ताविके श्रीमानजिनविजयेन श्रीआदीश्वरप्रभोः प्रतिष्ठा दिवसो मारवाडी वै० कृ०६ लिखितोऽस्ति तन्न समिचीन, वत गुजरीय वै० कृ० षष्ठयस्ति ।
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