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बहुलता से प्राप्त होते हैं। आज के युग में जब हम धार्मिक, आध्यात्मिक और नैतिक दृष्टि से बहुत कुछ खोते जा रहे हैं। पुरानी विरासत को बचायें रखने के लिए प्राचीन प्राकृत वाङ्मय में वर्णित विभिन्न मूल्यों को अपनाकर व्यक्ति, समाज, राष्ट्र और विश्व के कल्याण की कामना की जा सकती है।
संदर्भ
१.
संस्कृत-हिन्दी कोश, वी.एस.आप्टे, पृष्ठ-२४२ भामह, काव्यालंकार सूत्र. १/२८ विश्वनाथ, साहित्यदर्पण ६/३३४-५ अमरकोष १/५/६ विश्वनाथ साहित्यदर्पण. ६/३११, एवं संस्कृत-हिन्दी कोत्र, वी.एस.आप्टे, पृष्ठ-१३९ जैन न्यायदीपिका हितोपदेश, प्रस्तावना संस्कृत साहित्य का सरल इतिहास. पृष्ठ-१२६ शास्त्री नेमिचन्द्र, प्राकृत साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास. पृष्ठ-४४४ कुवलयमाला कथा, प्रस्तावना. डॉ. ए.एन.उपाध्ये, पृष्ठ-१२ दशवकालिक सूत्र, गाथा-१८८ (क) दशबैकालिक सूत्र वृत्ति गाथा-२०८-२१० (ख) प्रो.डॉ.प्रेम सुमन जैन, प्राकृत कथा साहित्य परिशीलन, जयपुर, १९९५ आचारांग सूत्र, ६/१, पृष्ठ-४३७ डॉ.जगदीशचन्द्र जैन, प्राकृत साहित्य का इतिहास, पृष्ठ-३०९-३१२ दशबैकालिक सूत्र, सूत्र-६/९ भावपाहुड, गाथा-१४३ टीका जहा कुम्मे स अंगाई सए देहे समाहरे । एवं पावाई मेहावी अज्झप्पेण समाहारे॥ सूत्रकृतांग सूत्र-१/८/१६ यशस्तिलकचम्पू काव्य, उत्तरार्ध-१० योगशास्त्र-४/११ एवं धम्मस्स विणओ मूलं परमो से मुक्खो। - दशबैकालिक -९/२/२ कार्तिकेयानुप्रेक्षा गाथा-३६४ मूलाचार गाथा ५८ सूत्रकृतांग सूत्र-१/१०/७ दशबैकालिक सूत्र-८/२७ द्वादशानुप्रेक्षा गाथा-११० उत्तराध्ययन सूत्र -१/८ व १/९
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