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________________ 34. आख्यानकमणिकोशवृत्ति में निहित वैश्विक मूल्य आख्यानकमणिकोश प्राकृत कथाओं का संग्रह ग्रंथ है। धर्म के विभिन्न अंगों को उपदिष्ट करने आचार्य नेमिचन्द्रसूरि ने इस ग्रंथ में अनेक लघुकथाओं का संकलन किया है। कथाकार नेमिचन्द्रसूरि की अन्य रचनाओं के साहित्यिक साक्ष्यों के आधार पर विद्वानों द्वारा इसका रचनाकाल विक्रम संवत् ११२९ से ११३९ के मध्य निश्चित किया गया है। आख्यानकमणिकोशमूल में कुल ५२ पद्य हैं, जो गाथा छन्द में हैं। ग्रंथ की विषयवस्तु ४१ अधिकारों में विभक्त है, जिनमें ९४६ आख्यानकों का निरूपण किया गया है। प्रत्येक अधिकार में विषय प्रतिपाद्य के साथ-साथ आख्यानकों के नायक - नायिका के नाम की सूचना मात्र दी गई है। प्रथम चतुर्विधबुद्धिवर्णनाधिकार की यह गाथा दृष्टव्य है, जहाँ लेखक ने औत्पत्तिकी, वैनयिकी, कर्मजा एवं पारिणामिकी बुद्धिकौशल को प्रकट करने के लिए नायकों के रूप में भरत, नैमित्तिक, मृषक और अभयकुमार के दृष्टान्तों का कथन किया है - उप्पत्तिय वेणइया कम्मय परिणामिया चउह बुद्धी । इ-निमित्तिय करिसग- अभयाईनायओ नेया ॥ भरह -1 डॉ. तारा डागा, जयपुर आख्यानकमणिकोश मूल गाथा - ३ ग्रंथकार की इस पद्धति से यह सूचित होता है कि ये कथाएँ अन्य कथाग्रंथों में और कर्णोपकर्ण पर्याप्तमात्रा में प्रसिद्ध थीं। कोश के रचयिता ने केवल उन-उन कथाओं को विविध विषयों के साथ सम्बद्ध करके उन कथाओं का विषय की दृष्टि से वर्गीकरण मात्र किया है। ग्रंथकार का यह भी प्रयोजन हो सकता है कि ग्रंथ छोटा होने से स्मृति के ऊपर विशेष भार न पड़ेगा और विषय की दृष्टि से तत्कथाओं का वर्गीकरण श्रमणों को याद रखना सरल हो सकेगा। आचार्य आम्रदेवसूरि ने ईस्वी सन् १९३४ में मूलआख्यानकमणिकोश पर बृहत् टीका की रचना की । आचार्य नेमिचन्द्रसूरि द्वारा रचित गाथा प्रमाण मूलआख्यानकमणिकोश पर १४ हजार श्लोकप्रमाण वृत्ति की रचना कर आचार्य आम्रदेवसूरि ने प्राकृत - कथा - कोश परम्परा में एक नवीन अध्याय का सूत्रपात किया है। उनकी एकमात्र रचना आख्यानकमणिकोशवृत्ति उनके प्रकाण्ड पाण्डित्य का परिचायक है । उनके इन सत्प्रयत्नों ने मुलआख्यानकमणिकोश को भी प्राकृत कथा - साहित्य-परम्परा में सदा के लिए अमर बना दिया। उनके इस महा ग्रंथ के लिए प्राकृत कथा साहित्य - परम्परा उनकी सदैव ऋणी रहेगी । Jain Education International सवृत्तिआख्यानकमणिकोश में ४१ अधिकार हैं, जिनमें १४६ आख्यानकों का निरूपण है । परन्तु, वृत्तिकार आमदेवसूरि ने पुनरावृत्ति वाले आख्यानकों की सूचना मात्र देते हुए शेष १२७ आख्यानकों का ही विस्तार से प्रतिपादन किया है। आख्यानकमणिकोशवृत्ति भाषा व साहित्य की दृष्टि से अत्यन्त सुन्दर व सरस रचना है। -279 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006701
Book TitleUniversal Values of Prakrit Texts
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherBahubali Prakrit Vidyapeeth and Rashtriya Sanskrit Sansthan
Publication Year2011
Total Pages368
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size19 MB
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