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________________ भाग और १७ वीं शताब्दी का मध्यभाग है । भट्टारक सुमतिकीर्ति ने कर्मकाण्ड और प्राकृतपन्चसंग्रह य जैसे सिद्धान्त ग्रन्थों की टीका लिखी है। इन टीकाओं से इनके सिद्धान्तविषयक पाण्डित्य का परिज्ञान होता है। ये आचार , दर्शन , कर्मसिद्धान्त , अध्यात्म एवं काव्य के निष्णात विद्वान् थे। १. कर्मकाण्डटीका आचार्य नेमिचन्द्र ने प्राकृत में कर्मकाण्ड की रचना की है। इस ग्रन्थ की संस्कृत टीका भट्टारक ज्ञानभूषण की सहायता से सुमतिकीर्ति ने की है। २. प्राकृतपंचसंग्रह टीका - - आचार्य अमितगति द्वारा वि सं १०७३ में प्राकृत-पंचसंग्रह संशोधन कर संस्कृत- पंचसंग्रह ग्रन्थ का गठन किया गया है । यह ग्रन्थ प्राचीन है , इसमें पांच प्रकरण हैं और इस पर भाष्य एवं संस्कृत टीकाएँ लिखी गयी है। इस पंचसंग्रह के संस्कृत-टीकाकार भट्टारक सुमतिकीर्ति हैं । टीकाके आरम्भ में गद्यभाग है और अन्त में पद्यों में प्रशस्ति दी गयी है। भट्टारक श्रुतसागरसूरि : षट्प्राभृतटीका आदि भट्टारक श्रुतसागरसूरि बलात्कारगण की सूरत-शाखा के भट्टारक हैं । विद्यानन्दि के पश्चात् मल्लिभूषण भट्टारक हुए , जो श्रुतसागर के गुरुभाई थे । मल्लिषेणके अनुरोध से श्रुतसागर ने यशोधरचरित, मुकुटसप्तमीकथा और पल्लिविधानकथा आदि की रचना की है । श्रुतसागर का व्यक्तित्व एक ज्ञानाराधक तपस्वी व्यक्तित्व है, जिनका एक-एक क्षण श्रुतदेवता की उपासना में व्यतीत हुआ है। श्रुतसागर निस्सन्देह अत्यन्त प्रतिभाशाली विद्वान थे। ये कलिकालसर्वज्ञ कहे जाते थे। भट्टारक श्रुतसागरसूरिका समय वि की १६ वीं शताब्दी है। श्रुतसागरसूरिकी अबतक ३८ रचनाएँ प्राप्त हैं। इनमें आठ टीकाग्रन्थ हैं, और चौबीस कथाग्रन्थ हैं , शेष छह व्याकरण और काव्य ग्रन्थ हैं। १. षट्प्राभृतटीका - आचार्य श्रुतसागरसूरि ने षट्प्राभृत की टीका प्रारम्भ करते हुए लिखा हैश्रीमल्लिभूषण भट्टारक की आज्ञा से प्ररेणा से और अनेक जीवों की प्रार्थना से श्री कुन्दकुन्दाचार्य द्वारा विरचित यषट्प्राभृतङ्क ग्रन्थ की टीका करने के लिये प्रवृत्त हुए हैं । इस टीका में भी यतथाचोक्तंङ्ख कहकर अनेक स्थानों के उद्धरण संकलित किये हैं । कुन्दकुन्दस्वामी के मूलवचनों का व्याख्यान सरल और संक्षेप रूप में किया है । टीका की शैली बहुत ही सरल , स्वच्छ और स्पष्ट है । दर्शन, चरित्र, सूत्र, बोध, भाव और मोक्ष इन छह प्राभृतों का व्याख्यान श्रुतसागरसूरि ने किया। -244 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006701
Book TitleUniversal Values of Prakrit Texts
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherBahubali Prakrit Vidyapeeth and Rashtriya Sanskrit Sansthan
Publication Year2011
Total Pages368
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size19 MB
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