SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 278
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ के चन्द्र गुफा में निवास करते थे, जो वर्तमान में गुजरात प्रान्त के जूनागढ़ जिले में गिरनार पर्वत का प्रदेश है। उस गुफा में आत्मध्यान करते हुए आगम साहित्य की रचना कराने का संकल्प लेकर धरसेन ने आन्ध्रप्रदेश के महिमा नगरी में आचार्य संघ विराजमान था, वहाँ पत्र भेज कर दो सुयोग्य शिष्यों को बुलवा लिया। वे दोनों मुनि पुष्पदन्त और भूतबलि थे। वे दोनों अत्यन्त विनयशील, समस्त कलाओं में पारंगत, देश, कुल एवं जाति से शुद्ध शीलवान थे। आचार्य धरसेन ने उनकी परीक्षा ली। उनकी योग्यता का निर्णय करके सम्पूर्ण ज्ञान का उन्हें श्रुताभ्यास कराया। इस प्रकार वे पारंगत हो गये। वे दोनों मुनि पुष्पदन्त, भूतबली तथा आचार्य धरसेन षट्खण्डागम के रचयिता हैं। षट्खण्डागम ग्रंथ का प्रतिपाद्य विषय षट्खण्डागम जैनदर्शन और सिद्धन्त का सर्वाधिक प्रामाणिक एवं महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है। मौलिक एवं विशाल साहित्य के रचयिता आचार्यों की शब्द - साधना, ज्ञान की विशदता, स्मृति सामर्थ्य को देखकर हमारी अल्पबुद्धि हतप्रभ हो जाती है । विगत दो हजार वर्षों में इस साहित्य - साधना में तत्पर आचार्य श्रमणसंघ समुदाय की पीढ़ियाँ अपने आपको कृतार्थ मानती हैं । षट्खण्डागम का प्रमुख विषय कर्मसिद्धान्त है। इनमें छह खण्ड हैं। यथा - प्रथम खण्ड : जीवट्ठाण जीवस्थान-सत्प्ररूपणा के प्रारम्भ सूत्र में पंच नमस्कार मंत्र द्वारा मंगलाचरण किया गया है। दूसरे सूत्र में जीव को पहचानने के १४ गुणस्थान एवं १४ मार्गणा स्थानों के विषय में विवेचन किया गया है। इसमें आठ अनुयोगद्वारा एवं नौ चूलिकाओं के माध्यम से कुल २३७५ सूत्रों की रचना हुई है। दूसरा खण्ड: खुद्दाबन्ध इस खण्ड में कुल १५९२ सूत्र हैं तथा यह ११ अधिकारों में निबद्ध हैं। इन अधिकारों को प्ररूपणा नाम से वर्णन करते हुए बन्धक जीव कर्मबन्ध कितने भेदों के द्वारा करता है, इसका शास्त्रीय विवेचन प्राप्त होता है। तीसरा खण्ड : बन्धसामित्तविचओ इस खण्ड में कुल सूत्र ३२४ हैं। कर्मबन्ध करने वाला बन्धक जीव का स्वामित्व १४ गुणस्थान, १४ मार्गणास्थान के माध्यम से वर्णन किया गया है। कितनी कर्मप्रकृतियाँ किन गुणस्थानों में जीव को बांधती हैं, इसका विवेचन किया गया है। कर्म व्युच्छित्ति सोदय बन्धरूप प्रकृति, परोदयबन्ध प्रकृति आदि का वर्णन किया गया है। चौथा खण्ड : वेदना इस खण्ड में शौरसेनी प्राकृत भाषा में कुल १५२३ सूत्र रचे गये हैं। मुख्य रूप से कृति अनुयोगद्वार एवं वेदना अनुयोगद्वार के माध्यम से महाकर्मप्रकृति प्राभृत के प्रमुख दो विषयों पर विवेचन किया गया है। इसके आरम्भ में ' णमो जिणाणं णमो वयमाण बुद्धिरिसिस्स नामक ४४ सूत्रों में गणधरवलय मंत्र का निरूपण भी यहाँ किया गया है। 36 Jain Education International 1 - 236 - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006701
Book TitleUniversal Values of Prakrit Texts
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherBahubali Prakrit Vidyapeeth and Rashtriya Sanskrit Sansthan
Publication Year2011
Total Pages368
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy