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________________ संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में म्यूनिख यूनिवर्सिटी के डीन प्रो.राबर्ट जेडिनबोस, जर्मनी एवं जैन विश्वभारती, लाडनूं की कुलपति समणी प्रो.डॉ. मंगलप्रज्ञा ने अपने उद्बोधन में इस संगोष्ठी को प्राकृत अध्ययन के विकास को आधार प्रदान करने वाला ठोस कदम बताया। इस अवसर पर संगोष्ठी की स्मारिका, प्रो.प्रेम सुमन जैन की अंग्रेजी पुस्तक प्राकृत प्राइमर एवं प्रो.विलियम बोली, जर्मनी की पुस्तक रत्नकरणडश्रावकाचार (अंग्रेजी अनुवादित) का लोकार्पण हुआ। समारोह में अध्यक्षय उद्बोधन में जगदगुरू कर्मयोगी स्वस्तिश्री चारुकीर्ति भट्टारक महास्वामी जी ने, श्रवणबेलगोला में प्राकृत भाषा के विकास की परम्परा को ३३००वर्ष प्राचीन बताया । आपने कहा कि श्रुतकेवली भद्रबाहु के समय से इस भूमि पर निरंतर प्राकृत भाषा के साहित्य निर्माण एवं संरक्षण का कार्य होता रहा है। सिद्धांतचक्रवर्ती आचार्यश्री नेमिचन्द्र के प्राकृत ग्रंथ और धवला टीका के ताडपत्रीय ग्रंथों का यहाँ पर संरक्षित होना इस भूमि के प्राकृत प्रेम को दर्शाता है। अतः यह अंतर्राष्ट्रीय प्राकृत संगोष्ठी प्राकृत की विरासत को उजागर करने वाली है। विदेशी विद्वानों का प्राकृत अध्ययन के प्रति समर्पण और शोध की पद्धति अनुकरणीय है। प्राकृत विद्वानों का निर्माण हो, आज की यह प्राथमिक आवश्यकता है। इस सत्र का संयोजन प्रो.प्रेम सुमन जैन ने किया एवं राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान में प्राकृत के अध्येता डॉ.रजनीश शुक्ला ने धन्यवाद ज्ञापन किया । इस संगोष्ठी में उद्घाटन एवं समापन सत्र के अतिरिक्त अन्य पाँच सत्र सम्पन्न हुए । उनमें सत्रों की अध्यक्षता प्रो.नलिनी बलवीर(फ्रांस), डॉ.ल्यूटगार्ड सोनी(जर्मनी), प्रो.सागरमल जैन (शाजापुर), प्रो.एडेलहेड मेट्टे (जर्मनी) एवं प्रो.हम्पा नागराजय्या (बैंगलूरु) ने किया। प्रो.दयानन्द भार्गव, प्रो.महावीर राज गेलडा, प्रो.आर.पी.पोद्दार, प्रो.राबर्ट जेडिनबोस (जर्मनी), प्रो.समणी मंगलप्रज्ञा (लाडनूं ),प्रो.कमला हम्पना (बैंगलूरु) आदि सम्मनित अतिथि विद्वान उपस्थित रहे। प्रो.विजयकुमार जैन (लखनऊ), प्रो.जयेन्द्र सोनी(जर्मनी), प्रो.प्रेम सुमन जैन(उदयपुर), प्रो.श्रेयांशकुमार(जयपुर) आदि विद्वानों ने संयोजन किया। कर्नाटक सरकार में रेवेन्यू विभाग के सेक्रेटरी श्रीमान् के.एस.प्रभाकर, आई.ए.एस., प्रमुख अतिथि के रूप में पंचम सत्र में सम्मिलित हुए । आपने अपने उद्बोधन में कहा कि जैन आचार्यों का भारतीय संस्कृति के विकास में महत्वपूर्ण योगदान है। प्राकृत जनसामान्य की बअषा रही है। उसका साहित्य देश की धरोहर है, जिसका संरक्षण और प्रचार-प्रसार होना चाहिए । बाहुबली प्राकृत विद्यापीठ के परमपूज्य भट्टारक स्वामी जी के निर्देशन में महत्वपूर्ण काय कर रही है। सरकार का सहयोग ऐसे कार्यों को मिलना चाहिए। श्री प्रभाकर जी ने श्रवणबेलगोला के बाहुबली प्राकृत संस्थान को कर्नाटक सरकार से मिलने वाले वार्षिक अनुदान की राशि में वृद्धि की घोषणा की और प्राकृ प्रोजेक्ट्स को सहयोग देन का आश्वासन दिया । इस सत्र की अध्यक्षता करते हुए परमपूज्य स्वामी जी ने कहा कि आज प्रो.ए.एन.उपाध्ये, प्रो.मालवणिया एवं प्रो.हीरालाल जैन जैसे विद्वानों के कार्यों से प्रेरणा लेने की आवश्यकता है। प्राकृत साहित्य का इतिहास अंग्रेजी और अन्य भाषाओं में भी होना चाहिए । प्राकृत कन्नड-अंग्रेजी डिक्शनरी की आवश्यकता है। प्राकृत विश्वविद्यालय की स्थापना में सरकारी सहयोग अपेक्षित है। सामाजिक संस्थाएँ विश्वविद्यालय नहीं चला सकती, लेकिन संस्थाओं को इस दिशा में सक्रिय होना जरुरी है। (xxiii) www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.006701
Book TitleUniversal Values of Prakrit Texts
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherBahubali Prakrit Vidyapeeth and Rashtriya Sanskrit Sansthan
Publication Year2011
Total Pages368
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size19 MB
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