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Proceedings Report of the Seminar
श्रवणबेलगोला में प्रथम अंतराष्ट्रीय प्राकृत संगोष्ठी सम्पन्न
बाहुबली प्राकृत विद्यापीठ एवं उसके अंतर्गत संचालित राष्ट्रीय प्राकृत अध्ययन एवं संशोधन संस्थान, श्रवणबेलगोला तथा राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, मानित विश्वविद्यालय, मानव संसाधन मंत्रालय, केन्द्र सरकार, नईदिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में प्रथम अंतराष्ट्रीय प्राकृत संगोष्ठी का आयोजन १२, १३ एवं १४ अक्टूबर, २०१० को श्रवणबेलगोला में सानन्द सम्पन्न हुआ। संगोष्ठी का प्रमुख विषय थअ प्राचीन प्राकृत ग्रंथों के वैश्विक मूल्य ।
संगोष्ठी का उद्घाटन समारोह जगदगुरु कर्मयोगी स्वस्तिश्री चारुकीर्ति भट्टारक महास्वामी जी, श्रवणबेलगोला की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ। प्रमुख अतिथि थे - राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, मानित विश्वविद्यालय, नईदिल्ली के कुलपति माननीय प्रोफेसर राधावल्लभ त्रिपाठी। प्रो. त्रिपाठी जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि प्राकृत भाषा एवं उसका साहित्य भारत के लोक जीवन की संस्कृति को उजागर करने वाला है। प्राकृत भाषा का भारतीय भाषाओं के साथ घनिष्ठ संबन्ध है। संस्कृत, पाली, अपभ्रंश अअदि भाषाओं के साहित्य को समझने के लिए प्राकृत का ज्ञान बहुत उपयोगी है। प्राकृत साहित्य के जीवन मूल्य आज के विश्व को शांति प्रदान करने वाले हैं। विश्व में जर्मनी आदि देशों में जो प्राकृत साहित्य पर कार्य हुआ है, प्राकृ विद्वानों को उसका उपयोग करना चाहिए। श्रवणबेलगोला की यह बाहुबली प्राकृत विद्यापीठ प्राकृत अध्ययन को विश्व स्तर पर प्रचारित कर रही है, इसमें सरकार और समाज का सहयोग अपेक्षित है।
संगोष्ठी का उद्घाटन सत्र लाल बहादुर शास्त्री केन्द्रीय संस्कृत विद्यापीठ के प्राकृत भाषा विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ.जयकुमार उपाध्ये के प्राकृत मंगलाचरण से प्रारंभ हुआ । श्रवणबेलगोला के प्राकृत विद्यापीठ के कार्याध्यक्ष श्रीमान् एम.जे इन्द्रकुमार ने समागत विदेशी और भारतीय प्राकृत मनीषियों का स्वागत किया। संगोष्ठी के निदेशक प्रोफेसर डॉ. प्रेम सुमन जैन ने विद्यापीठ द्वारा समायोजित विगत प्राकृत सम्मेलनों एवं संगोष्ठीयों का विवरण देते हुए, इस अंतराष्ट्रीय प्राकृत संगोष्ठी के प्रमुख विषय का प्रतिपादन किया ।
संगोष्ठी में विदेशों से प्रो. एडेलहेड मेट्टे (जर्मनी), प्रो. नलिनी बलवीर (फ्रान्स), प्रो. जोहानस ब्रोंकहार्सट (स्विटजरलैण्ड), प्रो. जयेन्द्र सोनी (मारवर्ग, जर्मनी), प्रो. हर्मन टिकेन ( नदिरलैण्ड), प्रो. राबर्ट जेडिनबोस (जर्मनी), डॉ. ल्यूटगार्ड सोनी (जर्मनी), श्रीमती सारा फिक (यू. एस. ए.) एवं डॉ. एवा मारिया (म्यूनिख, जर्मनी) सम्मिलित हुए। भारत से समागत लगभग साठ विद्वानों में प्रो. हम्पा नागराजय्या, बैंगलूरु, समणी डॉ. मंगलप्रज्ञा, कुलपति, लाडनूँ, प्रो. दयानन्द भार्गव, जयपुर, प्रो. रामप्रकाश पोद्दार, पूना, प्रो. शुभचन्द्र, मैसूरु, प्रो. नलिनी जोशी, पूना, प्रो. पद्माशेखर, मैसूरु, प्रो. विजयकुमार जैन, लखनऊ, प्रो. श्रेयांशकुमार जैन, जयपुर, डॉ.कल्पना जैन, दिल्ली, डॉ.ब्र. धर्मेन्द्र जैन, जयपुर, डॉ. अनेकान्त जैन, दिल्ली, डॉ. रजनीश शुक्ला, दिल्ली, डॉ. एन. सुरेशकुमार, मैसूरु आदि प्रमुख हैं। कर्नाटक, महाराष्ट्र एवं श्रवणबेलगोला के प्राकृत विद्यापीठ के भी कई विद्वान संगोष्ठी में सम्मिलित हुए।
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