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________________ (548) : नंदनवन अस्तु, समाज की जो भी दशा रहे पर शिक्षित व्यक्तियों को अपने मन और आचरण की समता द्वारा अपना विकास करना चाहिये। यही श्रेष्ठ है। समाज की बातों में आना अपने ज्ञान की खिड़की बन्द करने की ओर कदम उठाना है जो आज के बुद्धिवाद के युग की मांग के प्रतिकूल है। हमारे प्रयोग ही, आचरण ही हमें महावीर के अनुयायी होने का गौरव प्रतीत होने देंगे, यह सही है। ___ मैं ऐसे सामाजिक उद्धारक के रूप में भगवान महावीर को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं। ब. धर्म और व्यवहार (1963) मैं ग्लास्गो में एक गिरजाघर के सामने से जा रहा था। वहां श्यामपट पर लिखा था, 'हमारा मस्तिष्क स्वच्छ रहना चाहिये। लेकिन शराब से स्वच्छता भी जाती है और मस्तिष्क भी चला जाता है। यह बाइबिल का वाक्य है। पर पश्चिम में शराब से परहेज करने वाला अपवाद के रूप में ही मिलेगा। मुझे पाकिस्तान में ईसाई धर्म प्रचार करने वाले एक पादरी मिले। उन्होंने बताया कि वे एक प्रश्न के उत्तर में एक बार निरुत्तर हो गये थे। तबसे वे शाकाहारी बन गये। एक व्यक्ति ने उनसे पूछा, “ईसा के उपदेशों में दया और सहानुभूति की चरम सीमा है। पर क्या यह दया केवल मनुष्यों के लिये ही है या सभी प्राणियों के लिये है ?" "सभी के लिये उन्होंने कहा। "मैं इसे मानने के लिये तैयार नहीं हूँ। यदि यही बात होती, तो सारा ईसाई जगत् मांसाहारी और शराबी नहीं होता। प्रश्नकर्ता ने आगे बात जारी की। सच पूछे, तो धर्म और आचार-विचार का क्या सम्बन्ध है, यह सामाजिक जीवन के व्यावहारिक पहलुओं को देखकर तो नहीं ही समझा जा सकता, गुरुवाक्यों से चाहे जो भी फलितार्थ निकले। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006597
Book TitleNandanvana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN L Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages592
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size25 MB
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