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________________ (496) : नंदनवन अभिनेता की हो सकती है, जो अभिनय कर रहा हो, पर जिससे अभिनय की कथा पूछने पर "क्या कहा! कहानी ? माफ कीजिये, मैं कुछ भी नहीं कह सकता यह उत्तर दे रहा हो। ___ मैं अपने छोटे से नियमित कार्यक्रमों के अतिरिक्त अन्य कार्यों में जिन्हें मैं नहीं जानता या नहीं समझता हूं, तब तक हाथ नहीं डालता, जब तक उन्हें अपने कार्यों में "बाधक नहीं हैं, ऐसा न समझ लूं। एक दिन मैं बगीचे में मिट्टी खोद रहा था, खोदने पर जमीन के अन्दर बहुत गहरी जड़ें मिलीं। विचार आया, इन्हें नष्ट कर देना चाहिये। इस विचार से मुझे ऐसा अनुभव हुआ मानो मैं एक ऐसा सेनानी हूं, जो अपने अज्ञान-साम्राज्य की रक्षा के लिये शत्रु पर आक्रमण कर रहा है। फलस्वरूप, मैने कुदाली से खूब गहराई तक खोदकर उन जड़ों को नष्ट कर दिया। इस समय किये गये परिश्रम से मुझे पसीना आने लगा और मैं श्वासावरुद्ध हो गया। इस आक्रमण की याद कर आज भी मैं पीड़ा का अनुभव करने लगता हूं। लेकिन आश्चर्य की बात तो यह है कि मैं जितना ही उन जड़ों को खोदता गया, उतना ही उन जड़ों की शाखायें-उपशाखायें अनन्त-सी प्रतीत होने लगीं। फलतः परेशान होकर मैंने बगीचे के अनुभवी मालिन को बुलाया, जो उस समय मधुमक्खियों को पाल रही थी। जब उसने आकर मेरे कृत्य पर दृष्टि डाली, तो वह कह उठी, "आप तो एक पेड़ की जड़ें खोद रहे हैं और उसने लगभग 12 गज (36 फीट) दूर स्थित एक विशालकाय वृक्ष की ओर इशारा किया। "क्या मुझे उस समय अपनी मूर्खता का अनुभव नहीं हुआ होगा? अवश्य ही, पर मैं कई अवसरों पर इससे अधिक मूर्खता-अज्ञता का अनुभव कर चुका हूं। फिर भी, ऐसे अज्ञ से सम्मति मांगी जा रही है? अपनी ही बुद्धि के लिये ऐसे ही अवसरों में से एक का जिक्र यहाँ मैं और कर देना चाहता हूँ। जब मैं युवक था, एक दिन एक वृद्ध ने दो सवारियां किराये पर लेकर मुझे एक जंगल की सैर कराई। हम लोग आगे बढ़ रहे थे, अचानक एक पेड़ देखकर, उसके बारे में मैंने उस वृद्ध से कुछ कहा। पर वृद्ध ने उत्तर दिया, “यह चुनार का वृक्ष है। मैं युवक था, उत्तेजित हो उठा, बोला, "नहीं, यह चुनार नहीं है और चुनार वृक्ष की प्रकृति और पहचान बताने लगा। तब वृद्ध ने उत्तर दिया, “ओ हो, आप जो कह रहे हैं, वह दक्षिण इटली के प्रदेशों में पाये जाने वाले चुनार वृक्ष के विषय में है, वह मिश्र देशीय चुनार-वृक्ष है। इसके बाद, उसने विभिन्न प्रकार के चुनार वृक्षों के बारे में बड़ी अच्छी तरह बताया, और उसने एतद्विषयक अज्ञान के प्रकट होने से मेरे चेहरे पर होनेवाली प्रतिक्रिया की ओर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया। बातचीत के ही सिलसिले में मुझे पता चला, कि उसने अपना जीवन ही जंगलों में बिताया है, वह तो स्काटलैंड के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006597
Book TitleNandanvana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN L Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages592
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size25 MB
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