SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 493
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन शास्त्रों में भक्ष्याभक्ष्य विचार : (473) 12. कैलाशचन्द्र शास्त्री (अनु.); सागारधर्मामृत, भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली, 1981, पृ. 43-125, 13. अमृतचन्द्राचार्य; पुरुषार्थसिद्ध्युपाय, जैन स्वा. मं. ट्रस्ट, सोनगढ, 1978, पृ. 102, 123 14. नेमचन्द चक्रवर्ती; गोम्मटसार (जीवकाण्ड), प. प्रभावक मंडल, अगास, 1972 15. देखें सन्दर्भ 10. 16. दौलतराम कासलीवाल; जैन क्रिया कोष-, जिनवाणी प्र. कार्यालय, कलकत्ता, 1927, पृ. 8 17. देखो, संदर्भ 10. 18. देखो, संदर्भ 8. 19. देखें सन्दर्भ 16. 20. भीखणजी; नव पदार्थ, तेरापंथी महासभा, कलकत्ता, 1961, पृ. 114 21. देखें सन्दर्भ 3. 22. देखें सन्दर्भ 16. 23. उग्रादित्य आचार्य; कल्याणकारक, रावजी सखाराम ग्रंथमाला, भाोलापुर, 1940, पृ. 75, 78. 24. कैलाशचन्द्र शास्त्री (अनु.): सागारधर्मामृत, भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली, 1981, पृ. 43-125 25. योगविद्या, बिहार योग विद्यालय, मुंगेर, नवम्बर, 1975, पृ. 30 26. आचार्य राज कुमार जैन; जग. शास्त्री साधुवाद ग्रन्थ, जैन केन्द्र, रीवा, 1989, पृ. 287. 27. नेमीचंद जैन (सं.); तीर्थकर (आहार वि शांक), इन्दौर, जनवरी, 1986 28. मुनि नथमल (सं.): दशवैकालिक : समीक्षात्मक अध्ययन, जेरापंथी महासभा, कलकत्ता, 1967, पृ.113, 119 29. कुन्दकुन्दाचार्य; प्रवचनसार, पाटनी ग्रन्थमाला, मारोठ, 1956, पृ. 277, 281. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006597
Book TitleNandanvana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN L Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages592
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy