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जैन शास्त्रों में भक्ष्याभक्ष्य विचार : (457)
है। वैज्ञानिक दृष्टि से, मक्खन वसीय होने से उसमें शरीर तंत्र के चालन के लिये अन्न की तुलना में दुगुनी ऊर्जा प्रदान करता है, अनेक विटैमिन और लवण प्रदान करता है। इस आधार पर मक्खन की अभक्ष्यता गृहस्थों के लिये उतनी महत्त्वपूर्ण न हो जितनी साधु के लिये, सम्भावित है। (3-4) चलितरस और द्विदल ___ 'चलितरस' शब्द से ऐसे खाद्य पदार्थों का बोध होता है जिनके प्राकृतिक रस या स्वाद में कुछ दिनों रखे रहने पर, किण्वित होने पर और सम्भवतः संघनित करने पर परिवर्तन आ गया हो। वैज्ञानिक दृष्टि से तो दूध को भी चलितरस मानना चाहिये, क्योंकि यह अनेक प्रकार के आहार-घटकों के जीव-रासायनिक परिवर्तन के फलस्वरूप स्रवित होता है। पर यह खट्टा नहीं होता, अतः इसे चलितरस या विकृति नहीं माना जाता। इसीलिये इसके उपयोग में धार्मिक प्रतिबन्ध नहीं है। पर इसके किण्वन से उत्पन्न सभी उत्पाद चलितरस होते हैं। सम्भवतः घी चलितरस इसलिये नहीं माना जाता कि वह भी खट्टा नहीं होता। यह सामान्य धारणा है कि जल युक्त, बासी खाद्य पदार्थ (इन्हें वायुजीवी जीवाणु अपना घर बनाकर, विकसित होते समय अंशतः विदलित करके उनमें खटास ला देते हैं) अथवा किण्वन क्रिया से तैयार किये पदार्थों में विकृति के कारण खटास आ जाती है और वे विकारी हो जाते हैं। इस दृष्टि से सभी दक्षिण भारतीय प्रमुख खाद्य (इडली, डोसा, उत्तपम्, ढोकला, मट्ठा आदि) अभक्ष्यता की कोटि में आते हैं। उत्तर भारत की जलेबी, बड़ा, छोले-भटूरे, दहीबडा, आधुनिक युग की ब्रेड-बिस्किट आदि और नान, खमीर का चूर्ण, बासी रोटी और भात, नीबू का सिरका आदि भी चलितरस में ही समाहित होते हैं, क्योंकि उपरोक्त सभी पदार्थ मूल खाद्यों के किण्वन से तैयार किये जाते हैं। सम्भवतः इस प्रक्रम से बननेवाला सर्वप्रथम खाद्य 'मदिरा ही होगी, चलितरसों के भक्षण में भी मदिरा के समान दोष माना गया है।
अहिंसा की सूक्ष्म धारणा एवं प्राकृतिक चिकित्सकों के मत से हमारे आदर्श आहार में प्राकृतिक पदार्थों के सामान्य या उबले हुए रूप, उनके पीसने या उबालने से प्राप्त चूर्ण या रस एवं दूध-फल ही होना चाहिये। परन्तु मानव ने यथासमय आकस्मिक रूप से अनुभव किया कि खाद्यों को अग्नि पर पकाने से या किण्वित कर उपयोग करने से उनकी सुपाच्यता एवं रसमयता अधिक रुचिकर हो जाती है। इन क्रियाओं में खाद्यों के दीर्घाणु किंचित् वियोजित होकर लघु हो जाते हैं, जिससे उनके स्वांगीकरण में पाचनतंत्र को भी कम मेहनत करनी पड़ती है। इसलिये कच्चे, उबले या अकिण्वित खाद्यों की तुलना में सामान्य आहार में अन्य प्रकार के खाद्य अधिक होते हैं। इनकी अभक्ष्यता का आधार इनमें जीवाणुओं (यीस्ट,
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