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________________ (456) : नंदनवन होता है। वस्तुतः मक्खन दूध या मलाई के आंशिक किण्वन से प्राप्त होता है। उग्रादित्य ने बताया है कि इसके गुण दूध से मिलते-जुलते हैं। 23 1. दूध: शीत, मधुर, चिक्कण, हितकर, रोगनाशक, कामवर्धक, पुष्टिकर, अमृत 2. मक्खन : शीत, मधुर-अम्ल, पथ्य, हितकर, रोगनाशक, अतिवृष्य 3. घृत: शीत, पाचक, दृष्टिवर्धक, रोगनाशक मेध्य, पुष्टिकर, रसायन 4. दही : उष्ण, अम्ल, चिक्कण, मलावरोधी, वातनाशक, वृष्य, विषहर, गुरु 5. तक्र : उष्ण, अम्ल, रुक्ष, कषाय, मलशोधक, कफनाशकअग्निवर्धक, लघु दूध और मक्खन में यह अन्तर है कि दूध में पानी अधिक, वसा कम होता है और मक्खन में वसा अधिक ( 85% ) और जल तथा अन्य पदार्थ कम ( 15% ) होते हैं। वस्तुतः मक्खन बनाने की प्रक्रिया दूध के तैल-जल इमल्शन को जल-तैल इमल्शन में परिवर्तन करने की प्रक्रिया है । इसे सरल करने के लिये यह पाया गया कि यदि प्रासुक या पैस्चुरीकृत दूध या मलाई को लैक्टिक एसिड बैसिली नामक बैक्टीरियाई किण्व या तद्युक्त दही, तक्र या अम्ल पदार्थों से ऋतु व तापमान के अनुसार 10-18 घंटे तक उपचारित किया जाए, तो दूध का वसीय भाग किंचित् किण्वित होने के कारण सरलता से पृथक किया जा सकता है। इस क्रिया में दूध के कुछ विलेय अंश खट्टे लैक्टिक अम्ल या दही में परिणत होकर मक्खन में कुछ खटास पैदा करते हैं और उसे लैक्टिक स्वाद व गन्ध देते हैं । फलतः मक्खन में न केवल दूध की वसा ही रहती है, अपितु उसमें विद्यमान कैल्सियम आदि प्रोटीन भी रहते हैं । इस प्रकार, हम देखते हैं कि मक्खन प्राप्त करने में बैक्टीरियाई परिवर्तन होता है। ये बैक्टीरिया एक कोशिकीय सूक्ष्म जीवाणु माने जाते हैं और अपने विकास के समय दूध के वसाविहीन कुछ अवयवों को लैक्टिक अम्ल जैसे पाचक घटकों में परिणत कर उसे और भी उपयोगी बनाते हैं । इसी आधार पर दही और मटठे को स्वास्थ्य की दृष्टि से उत्तम खाद्य माना गया है । वस्तुतः दही, तक्र और मक्खन: सभी दूध की विकृतियां हैं। इसीलिए आज इन्हें भोजन का अनिवार्य घटक माना जाता है । फलतः यह स्पष्ट है कि मक्खन का प्रभाव उत्तम है । सम्भवतः यही कारण है कि पहले इसे अभक्ष्य नहीं माना जाता था । इसकी अभक्ष्यता की मान्यता उत्तरवर्ती है इसमें शास्त्रीय दृष्टि से उत्पाद दोष माना जाता है, परन्तु प्रभाव दोष नहीं । अतः मद्य के विपर्यास में, यह बहुफल - अल्पघाती है और मद्य निषेध की तुलना में, इसके विषय में अल्प विवरण ही मिलता है। यदि बुद्धि एवं वीर्य-वर्धकता कोई दोष है, तो मक्खन निश्चित रूप से इस दोष से दूषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006597
Book TitleNandanvana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN L Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages592
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size25 MB
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