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________________ अवग्रहेहावायधारणा : (419) वैज्ञानिक चौदहवीं सदी में हमारे अपने प्रयोग और अनुभव से बता सके। काश, इन्हें हमारे आगम और तत्त्वार्थसूत्र मिले होते ? इस सूत्र के अनुसार, मतिज्ञान प्राप्ति के पांच चरण होते हैं- प्रथम इंद्रिय, और पदार्थों के प्रत्यक्ष या परोक्ष सम्पर्क से निराकार दर्शन, फिर साकार सामान्य ज्ञानात्मक अवग्रह, फिर किंचित् मन का उपयोग कर विचार परीक्षण करने से वस्तु विशेष का अनुमान - ईहा, इन्द्रिय सम्बद्ध वस्तु विशेष का उपलब्ध तथ्यों और विचारों के आधार पर निर्णय - अवाय या अपाय, लिये ध्यान स्मरण में रखना धारणा ये इन्हीं चरणों को वैज्ञानिक जगत् अपनी निम्न प्रकार से व्यक्त करता है : दर्शन और अवग्रह - और तब उसे भावी उपयोग के क्रमिक चरण हैं, पूर्वोत्तरवर्ती हैं। स्वयं की पारिभाषिक शब्दावली में 1. प्रयोग और निरीक्षण वर्गीकरण 2. ईहा 3, परिणाम निष्कर्ष, उपपत्ति, 4, नियम / सिद्धान्त धारणा अवाय इनमें से प्रथम चरण को छोड़ अन्य चरणों में मन और बुद्धि की प्रमुखता बढ़ती जाती है। तुलनात्मक दृष्टि से ऐसा प्रतीत होता है कि हमारे यहां 'धारणा' शब्द का अर्थ कुछ सीमित अर्थों में किया गया है। वस्तुतः यह शब्द अनेकार्थक है और इसे उपरोक्त चार चरणों से प्राप्त इन्द्रिय और मन के उपयोग से निष्कर्षित एवं श्रुत के आधार के रूप में मानना चाहिऐ। यही परिभाषा इसे नियम या सिद्धान्त के समकक्ष ला देती है । इस प्रकार ज्ञानप्राप्ति की वर्तमान चतुश्चरणी वैज्ञानिक पद्धति अवग्रहेहावायधारणाः का नवीन संस्करण ही है । इस पर आधारित धर्म या दर्शन को वैज्ञानिकता प्राप्त हो, इसमें आश्चर्य नहीं करना चाहिये । 1-2 बहु और एक बहुविध और एकविध 3-4 मतिज्ञान के भेद और सीमायें शास्त्रों में अवग्रह आदि को भेद के रूप में माना गया है। इसमें अवग्रह का विशेष वर्णन है क्योंकि यह हमारे ज्ञान का प्रथम और मूलभूत चरण है। यह श्रुत - निःसृत और अश्रुत-अनिःसृत के रूप में दो प्रकार से उत्पन्न हो सकता है। यह व्यक्त रूप से होता है और अव्यक्त अवग्रह चक्षु और मन को छोड़ कर शेष चार इन्द्रियों के कारण ही होता है। अव्यक्त अवग्रह दर्शन की समतुल्यता प्राप्त कर सकता है, ऐसा भी कहा गया है। अवग्रह के विपर्यास में ईहादिक चरण व्यक्त रूप में ही होते हैं। मतिज्ञान से पदार्थों की जिन विशेषताओं का अध्ययन किया जाता है, उनकी संख्या 12 बताई गई है: Jain Education International - संख्या तथा परिमाण (भार) द्योतक पदार्थों के विविध जातीय रूपों की संख्या तथा परिमाण For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006597
Book TitleNandanvana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN L Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages592
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size25 MB
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