SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 414
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (394) : 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 1233 नंदनवन सारणी 3 : निगोदिया जीव और बेक्टीरिया की तुलना निगोदिया जीव (शास्त्रीय) एकेन्द्रिय तन्त्रिका तन्त्र का अभाव सर्वलोक व्याप्त परजीवी सम्मूर्च्छन जन्म 1 2 साधारण वनस्पति सूक्ष्म और बादर 10 10 से 10-21 सेमी. विस्तार (धनांगुल का असंख्यतवां भाग) अव्याबाध, बादरों में व्याघात भी सम्भव गोलाकार, आयताकार एक शरीर में अनन्त--जीव सूक्ष्म बेक्टीरिया (बेक्टीरिया, वैज्ञानिक एकेंद्रिय तन्त्रिका तन्त्र का अभाव लोक व्याप्त परजीवी अधिकांश का अलैंगिक, कुछ का लैंगिक जन्म प्रजीव वनस्पति वैज्ञानिकतः सूक्ष्म 10 10 सेमी. विस्तार एक श्वास में 18 वार जन्म-मरण जघन्य आयु : आवलि का असंख्यतवां भाग फलतः यह मानना अस्वाभाविक नहीं होगा कि संख्यात्मक रूप से निगोदिया जीवों की तुलना में बेक्टीरिया के समान वैज्ञानिकों द्वारा मान्य सूक्ष्म जीवों का पीड़न एवं हिंसन भी उच्चतर होना चाहिये । तथापि, ये दोनों ही एकेन्द्रिय जाति के हैं, और इनकी चैतन्य कोटि प्रायः समान है। निगोदिया जीवों को कोशिका या वायरस की समकक्षता नहीं दी जानी चाहिये। इनके आकार आदि गुणों में भारी विषमता है । 26 वाजवी प्रक्रम सूर्य रश्मि के कारण वैक्टीरियाई वृद्धि अधिक बाधित ही होते हैं । अनेक आकार Jain Education International वायरस बेक्टीरिया में पहुँचकर अनन्त हो जाते हैं । इस आधार पर स्वक्षालित - शौचालयों में हिंसन अल्पीकृत होता है और इनका उपयोग वर्तमान में वन्य-संस्कृति की परम्परा के विपर्यास में, अधिक विवेकपूर्ण माना जाना चाहिये ( सारणी 4 ) । हां, जहां प्राचीन परम्परानुसार सुविधा हो, वहां स्वविवेक से काम लेना चाहिये । प्राचीन परम्परा में भी अपवाद मार्ग के लिये प्रायश्चित्त का विधान है। फलतः युगानुकूलन आवश्यक है। इस विषय में जमुना लाल जैन ने भी चर्चा की है। 27 तीव्रगति से वृद्धि करते हैं अनिश्चित सारणी 4 : खुले और स्व- क्षालन शौचालयों की तुलना खुले शौचालय मल में 25-30% ठोस, बांकी पानी स्वक्षालित शौचालय एक कोशिकीय प्रोटीन / जैव खाद, मल में प्राय: 10-15 ग्राम ठोस भौतिक अवायुजीवी प्रक्रम बेक्टीरियाई वृद्धि कम For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006597
Book TitleNandanvana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN L Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages592
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy