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________________ 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 उच्चतर कोटि के जीवाणुओं का अस्तित्व और पीड़न विविधता हिंसा का समुद्र : अहिंसा की नाव : (395) सूक्ष्मतर कोटि के जीवाणुओं का पीड़न जीवाणुओं की एकरूपता मिट्टी से सम्पर्क नहीं मिट्टी के जीवाणुओं के संयोग से अधिकाधिक वृद्धि मिट्टी के तल पर जीवाणुओं की संख्या 107 / ग्राम मिट्टी मल - विमलन क्षमता : उच्च अर्ध- ठोस मल का मिट्टी में पर्याप्त पारगमन, फलतः अधिक पीड़न मीथेन गैस उपभोक्ता बेक्टीरिया बी.ओ.डी. पर्याप्त खाद के रूप में कम उपयोगी प्राकृतिक चक्र परिवर्धित नहीं होते हैं अब हम यहां सामान्य परम्परावादी शौच का परिकलन करें। मल - विमलन- क्षमता : उच्चतर अर्ध- ठोस मल का जल में मिश्रण और जीवाणुओं का तनुकरण और अल्पपीड़न मीथेन गैस उत्पादी बेक्टीरिया बी.ओ.डी. अल्पीकृत होता है खाद के रूप में अधिक उपयोगी प्राकृतिक चक्र परिवर्धित होते है । क्रिया में सम्भावित हिंसा के यूनिटों यदि हम खुले शौच के विषय में चर्चा करें, तो शौच खेतों में स्थंडिल भूमि में किया जाता है। यह पाया गया है कि मिट्टी की सतह पर 10/ग्राम या 10° / घन सेमी. बेक्टीरिया या अन्य सूक्ष्म जीवाणु होते हैं । यदि मलत्याग स्थल औसतन 9 सेमी x 6 सेमी. माना जाय और अर्ध- ठोस होने के कारण उसकी मिट्टी प्रवेश्यता 3 सेमी. मानी जाय, तो मलत्याग का स्थल - आयतन 9x6 x 3 = 162 घन सेमी. होगा। इस प्रकार, खुले शौचालय में मल-त्याग के समय 1.62x 1011 सूक्ष्म जीवाणुओं का पीडन होता है जिसमें 1011x103 = 1.62 x 108 यूनिट हिंसा होती है। यदि इसमें मूत्र का फैलाव लगभग 100 सेमी और जोड़ा जाय तो लगभग 900 घनसेमी. में और भी पीडन होगा, जो 900 x 10 11 x 10 3 = 9x1010 यूनिट हिंसा के बराबर होगा । इस प्रकार, मिट्टी की सतह पर ही 1.62 x 108 +9 x 1010 = 1.62 x 1011 यूनिट हिंसा होगी । Jain Education International अब हम उस हिंसा पर भी विचार करें जो मल में विद्यमान बेक्टीरियाओं के कारण होती है। बेस्ट ऐंड टेलर ने बताया है कि औसतन एक व्यक्ति 170-250 ग्राम मल और 1100 ग्राम मूत्र उत्सर्जित करता है । मल में 30 प्रतिशत ठोस होते हैं जिनमें एक तिहाई बेक्टीरिया एवं अन्य सूक्ष्म जीवाणु या आद्य जीव होते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि मल में प्रायः 20-25 ग्राम सूक्ष्म जीवाणु ( अर्थात् 25 x 10° बेक्टीरिया) रहते हैं । परिस्थितिजन्य विविधताओं के कारण इनमें कुछ हानिकारक होते हैं और कुछ उपकारक भी होते हैं। मल पर सूर्य रश्मियों की विश्वीय या पराबैगनी किरणें भी पड़ती हैं जो अपनी तीव्रता के अनुसार, उनको हानि पहुँचाती हैं या उन्हें विनष्ट कर For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006597
Book TitleNandanvana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN L Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages592
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size25 MB
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