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________________ (378) : नंदनवन उन्हें भी अहिंसा की कोटि में रखते हैं।" यह हिंसक वृत्ति की प्रेरणा ही कही जायेगी । वस्तुतः जैनों ने स्व-व्यक्ति के जीवनरक्षण की स्वयंकृत या प्रकृत्या आपातित हिंसा को हिंसा के रूप में असंकल्पी कहकर मान्य ही किया । उनकी हिंसा की कार्य योजना परमुखी, परहिती ही लगती है । 10 13 उदाहरणार्थ, प्राचीन काल में खेती मुख्यतः धान्य और कपास की और हरितकाय की भी होती थी। उसमें जमीन को हल-बैलों से जोतना, बीज - वपन एवं निराई आदि क्रियाओं में एकेन्द्रिय एवं उच्चतर जीवों का पीड़न / मारण होता है। जमीन में इनकी सत्ता प्रत्यक्ष सिद्ध है। मार्टिन अलेक्जेंडर 12 ने बताया है कि कृषि भूमि में विभिन्न कोटि के सूक्ष्म और स्थूल एकेन्द्रिय जीवों की संख्या 108 - 10 प्रति घन सेमी. (एक अरब से दस अरब तक) होती है। इसमें उच्चतर कोटि के जीव भी होते हैं। लोढ़ा ने बताया है कि एकेन्द्रिय की तुलना में वर्धमान कोटि के जीवों की प्राणशक्ति अनन्तगुनी होती है और उनका विस्तार भी चक्षुगम्य एवं वृहत्तर होता जाता है। खेती के लिये सामान्य खाद या कंपोस्ट खाद तैयार करने में कितनी हिंसा होती है? गोबर गैसवाली खाद की भी बात यही है । (यह प्राचीनकाल में अज्ञात था ) । पूर्वोक्त आधारों पर धान्य के कृषि योग्य क्षेत्र के विशिष्ट धनात्मक क्षेत्र में कितनी हिंसा हो सकती है, इसका अनुमान लगाया जा सकता है। यह अन्य व्यवसायों की तुलना में पर्याप्त अधिक है, यह स्पष्ट है। कपास की कृषि में कुछ कम हिंसा होती है। सम्भवतः इसीलिये उत्तरवर्ती काल में कृषि-व्यवसाय के प्रति उदासीनता आई । यह 'कृत' के रूप में आई, कारित या अनुमोदित रूप में नहीं । यह इसी से प्रकट है कि महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्यप्रदेश व देश के अनेक भागों में जैन 'कारित' (उसके साथ अनुमोदित भी हो सकती है) के रूप में कृषि करते हैं I यही नहीं, वे किसानों को कृषि हेतु ऋण भी देते हैं। इन दोनों ही विधियों में, उपरोक्त आधारों पर हिंसा का मान अधिक होता है । (ब) आहारजन्य हिंसा : हमारा आहार अशन, स्वाद्य, खाद्य तथा पान के रूप में चतुर्विध होता है। इसके तीन घटक वनस्पतियों से ही प्राप्त होते हैं। यह बताया गया है कि वनस्पतिकाय या हरितकाय का हिंसन / पीड़न, आहार के अतिरिक्त भी, सर्वाधिक कारणों से होता है। इस हिंसन का मान न केवल विविध है, अपितु पर्याप्ततः अधिक होना चाहिये क्योंकि वनस्पति का प्रत्येक अंश 101 सेमी. की कोशिकाओं से बना होता है। फलतः 1 वर्ग से.मी. क्षेत्र में 10° (दस करोड़) कोशिकायें सम्भावित हैं। प्रो. मरडिया के अनुसार, यदि एकेन्द्रियजीवों की प्रति यूनिट कोशिका का जीवनमान 10-1 101 या औसत 103 यूनिट माना जाय, तो एक वर्ग सेमी की पत्ती के उपयोग में ही 10 x 10 = 10 यूनिट हिंसा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006597
Book TitleNandanvana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN L Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages592
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size25 MB
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