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________________ (298) : नंदनवन समन्तभद्र तीन मकार त्याग पंचाणुव्रत पालन आशाधर तीन मकार त्याग पंचोदुम्बर त्याग अन्य तीन मकार त्याग पंचोदुम्बर त्याग, रात्रि भोजन त्याग, देवपूजा, जीवदया, छना जलपान समयानुकूल स्वैच्छिक परिवर्तनों को तेरहवीं सदी के पण्डित आशाधर तक ने मान्य किया है। यहां शास्त्री समन्तभद्र की मूलगुण-गाथा को प्रक्षिप्त मानते हैं । बाईस अभक्ष्यः सामान्य जैन श्रावक तथा साधुओं के आहार से सम्बन्धित भक्ष्याभक्ष्य विवरण में दसवीं सदी तक बाईस अभक्ष्यों का उल्लेख नहीं मिलता । मूलाचार एवं आचारांग के अनुसार, अचित्त किये गये कन्दमूल, बहुबीजक (नि:जित) आदि की भक्ष्यता साधुओं के लिये वर्णित है। पर उन्हें गृहस्थों के लिये भक्ष्य नहीं माना जाता । वस्तुतः गृहस्थ ही अपनी विशिष्ट चर्या से साधुपद की ओर बढ़ता है, इस दृष्टि से यह विरोधाभास ही कहना चाहिये । सोमदेव आदि ने भी गृहस्थों के लिये प्रासुक-अप्रासुक की सीमा नहीं रखी । सम्भवतः नेमिचंद्र सूरि के प्रवचनसारोद्धार' में और बाद में मानविजय गणि के धर्मसंग्रह में दसवीं सदी और उसके बाद सर्वप्रथम बाईस अभक्ष्यों का उल्लेख मिलता है। दिगम्बर ग्रन्थों में दौलतराम के समय ही 53 क्रियाओं में अभक्ष्यों की संख्या बाईस बताई गई है । फलतः भक्ष्याभक्ष्य विचार विकसित होते-होते दसवीं सदी के बाद ही रूढ़ हो सका है। (इस विषय पर आगे एक लेख दिया गया है।) आहार के घटक : भक्ष्य आहार के घटकों में भी अन्तर पाया जाता है। मूलाचार की गाथा 822 में आहार के छह घटक बताये गये हैं, जबकि गाथा 826 में चार घटक ही बताये हैं । ऐसे अनेक तथ्यों के आधार पर मूलाचार को संग्रह ग्रन्थ मानने की बात कही जाती है। श्रावक के व्रत : उपासकदशा, कुन्दकुन्द और उमास्वाति के युग से श्रावक के बारह व्रतों की परम्परा चली आ रही है । कुन्दकुन्द ने सल्लेखना को इनमें स्थान दिया है पर उमास्वाति, समन्तभद्र और आशाधर इसे पृथक् कृत्य के रूप में मानते हैं। इससे बारह व्रतों के नामों में अन्तर पड़ गया है। इनमें पांच अणुव्रत तो सभी मे समान है, पर अन्य सात शीलों के नामों में अन्तर है। (अ) गुण व्रत कुन्दकुन्द दिशा-विदिशा प्रमाण अनर्थ दण्ड व्रत भोगोपभोग परिमाण उमास्वाति दिग्व्रत अनर्थ दण्ड व्रत देश व्रत आशाधर, समन्तभद्र दिग्व्रत अनर्थ दण्ड व्रत भोगोपभोग परिमाण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006597
Book TitleNandanvana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN L Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages592
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size25 MB
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