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________________ अध्याय - 2 आगम-तुल्य ग्रन्थों की प्रामाणिकता का मूल्यांकन* वर्तमान वैज्ञानिक युग की यह विशेषता है कि इसमें विभिन्न भौतिक व आध्यात्मिक तथ्यों और घटनाओं की बौद्धिक परीक्षा के साथ प्रायोगिक साक्ष्य के आधार पर भी व्याख्या करने का प्रयत्न होता है। दोनों प्रकार के संपोषण से आस्था बलवती होती है। वैज्ञानिक मस्तिष्क दार्शनिक या सन्त की स्वानुभूति, दिव्यदृष्टि या मात्र बौद्धिक व्याख्या से सन्तुष्ट नहीं होता । इसीलिये वह प्राचीन शास्त्रों, शब्द या वेद की प्रामाणिकता की धारणा की भी परीक्षा करता है। जैन शास्त्रों में प्राचीन श्रुत की प्रमाणता के दो कारण दिये हैं- (1) सर्वज्ञ, गणधर, उनके शिष्य-प्रशिष्यों द्वारा रचना और (2) शास्त्र वर्णित तथ्यों के लिये बाधक प्रमाणों का अभाव।' इस आधार पर जब अनेक शास्त्रीय विवरणों का आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टि से अध्ययन किया जाता है, तब मुनिश्री नन्दिघोष विजयं के अनुसार स्पष्ट भिन्नतायें दिखाई पड़ती हैं। अनेक साधु, विद्वान्, परम्परापोषक और प्रबुद्धजन इन भिन्नताओं के समाधान में दो प्रकार के दृष्टिकोण अपनाते हैं : (अ) वैज्ञानिक दृष्टिकोण के अनुसार, ज्ञान का प्रवाह वर्धमान होता है। फलतः प्राचीन वर्णनों मे भिन्नता ज्ञान के विकास-पथ को निरूपित करती है। यह दृष्टि प्राचीन शास्त्रों को इस विकासपथ के एक मील का पत्थर मानकर इन्हें ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में स्वीकृत करती है। इससे वे अपनी बौद्धिक प्रगति का मूल्यांकन भी करते हैं। (ब) परम्परापोषक दृष्टिकोण के अनुसार, समस्त ज्ञान सर्वज्ञ, गणधरों एवं आरातीय (दूरस्थ) आचार्यों के शास्त्रों में निरूपित है। वह शाश्वत माना जाता है। इस दृष्टिकोण में ज्ञान की प्रवाहरूपता एवं विकास-प्रक्रिया को स्थान प्राप्त नहीं है। इसलिये जब विभिन्न विवरणों, तथ्यों और उनकी व्याख्याओं में आधुनिक ज्ञान के परिप्रेक्ष्य में भिन्नता परिलक्षित होती है, तब इस कोटि के अनुसा विज्ञान की निरन्तर परिवर्तनीयता एवं शास्त्रीय अपरिवर्तनीयता की चर्चा उठाकर परम्परा-पोषण को ही महत्त्व देते हैं। यह "यह लेख पं. जगन्मोहन लाल शास्त्री साधुवाद ग्रंथ, 1988 में प्रकाशित हुआ है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006597
Book TitleNandanvana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN L Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages592
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size25 MB
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