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________________ प्रकाशकीयम... Publisher'snote आनंदकीयम्... रहा है. इस माहौल को देखते हुए धार्मिक संस्कार की सुरक्षा एवं संवर्धन के लिए अंग्रेजी भाषा को अनिवार्य रूप में स्वीकार करना ही रहा! विद्वान मुनिराज श्री निर्वाणसागरजी ज्ञान-क्रियाभ्यां मोक्षः म. सा. ने अत्यंत परिश्रम पूर्वक तैयार की हुई इस सामग्री को प्रकाशित करने का हमें अवसर दिया, अतः हम मुनिश्री के हार्दिक आभारी हैं! श्री अरुणोदय फाउण्डेशन से दस पूर्वधर श्रुतकेवलि श्री उमास्वाति महाराजा का यह वचन - 'ज्ञान एवं क्रिया 'श्री प्रतिक्रमण सूत्र सह विवेचन' भाग-१एवं भाग-२ के रूप में प्रकाशित हो रहा से मोक्ष कि प्राप्ति होती है' भव्य जीवों को ज्ञानयोग एवं क्रियायोग में विशेष प्रकार है यह हमारे लिए गौरव की बात है. से उद्यम करने के लिए प्रेरित करता है! श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र - कोवा के भी हम आभारी हैं जिन्होंने इस संपूर्ण | अकेले ज्ञान से या अकेली क्रिया से संसार का संक्षय नहीं होता किन्तु ज्ञान एवं ग्रंथ का कष्टसाध्य कंपोज़ आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञान मंदिर के कंप्यूटर विभाग | क्रिया के संयोजन से ही परम पद मिलता है. पंचाचार के सम्यक परिपालन के लिए में करवा कर हार्दिक सहयोग दिया है. | सम्यग ज्ञान एवं सम्यक क्रिया की यथार्थ जानकारी आवश्यक है. प्रस्तुत प्रकाशन में आर्थिक सहयोगी सभी दाताओं के भी हम हार्दिक आभारी हैं. शासन प्रभावक परमोपकारी पूज्यपाद आचार्य प्रवर श्रीमत पद्मसागरसूरीश्वरजी श्री प्रवीणभाई (धीरज स्टेशनर्स - अहमदाबाद), श्री नगीनभाई (मेहता ब्रदर्स - मुंबई) म.सा. के शिष्यरत्न स्वाध्यायमग्न उपाध्याय श्री धरणेन्द्रसागरजी म.सा. के शिष्यरत्न एवं श्री जयेशभाई (दुंदुभी प्रीन्टर्स) के भी हम आभारी हैं जिन्होंने इस प्रकाशन में सुंदर |श्रुतोपासक मुनिराज श्री निर्वाणसागरजी म. सा. ने 'प्रतिक्रमण सूत्र सह विवेचन' ग्रंथ सहयोग दिया है. | हिन्दी एवं अंग्रेजी में अथक परिश्रम पूर्वक तैयार किया है! अंत में, इस पुस्तक के माध्यम से मुमुक्षु आत्माएँ सम्यग् ज्ञान एवं सम्यक् क्रिया में ___ 'प्रतिक्रमण सूत्र' की अनेक पुस्तकें भिन्न-भिन्न प्रकाशकों ने प्रकाशित की हैं, मगर सविशेष विकास करें यही मंगल भावना. | यह प्रकाशन अपने आप में इसलिए विशिष्ट है कि अंग्रेजी में शब्दार्थ, गाथार्थ, विशेषार्थ श्री अरुणोदय फाउण्डेशन, कोबा |एवं भावार्थ के साथ प्रकाशित होने वाला यह सर्व प्रथम प्रकाशन है!!! ट्रस्टी गण. ___ वर्तमान युग में बहोत से जैन बालकों का शैक्षणिक अभ्यास अंग्रेजी माध्यम से हो प्रतिक्रमण सूत्र सह विवेचन - भाग-२ Pratikramana Sūtra With Explanation - Part - 2 43 . Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.006538
Book TitlePratikramana Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirvansagar
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1997
Total Pages370
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Ritual_text, & Ritual
File Size9 MB
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