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sutra part
1. navakāra mahāmantra
१. नवकार महामंत्र
सूत्र विभाग ११ २१. वाणी प्रशंसा के योग्य होती है. २२. वाणी अन्य के मर्म को प्रगट न करने वाली होती है. २३. वाणी आचरण के योग्य होती है. २४. वाणी धर्म [आचार और पदार्थों के अर्थ से युक्त होती है. | २५. वाणी कारक. वचन, लिंग आदि की विपरीतता से रहित होती |
२६. वाणी विभ्रम, विक्षेप आदि मनोदोष रहित होती है. २७. वाणी श्रोताओं के मन में आश्चर्य उत्पन्न करने वाली होती है. | २८. वाणी अद्भुत होती है. २९. वाणी अति विलंब रहित होती है. . ३०. वाणी अनेक प्रकार की विचित्रताओं वाली और पदार्थों का अनेक |
प्रकार से वर्णन करने वाली होती है. ३१. वाणी अन्यों की अपेक्षा से विशेषता स्थापित करने वाली होती है. ३२. वाणी वर्ण, पद एवं वाक्य के भेद वाली होती है. ३३. वाणी सत्त्व प्रधान होती है. ३४. वाणी अखंडित प्रवचन प्रवाह वाली और कहने के लिए इच्छित |
विषय को अच्छी तरह सिद्ध करने वाली होती है. ३५. वाणी सहजता से उत्पन्न होने वाली होती है.
21. Sermon will be praise worthy. 22. Sermon will not be disclosing the secrets of others. 23. Sermon will be worth practising. 24. Sermon will be with spiritual conduct and with the meaning of matters. 25.Sermon will be without contradiction between case, time,number, gender
etc. 26. Sermon will be without psychological defects like confusion, interruption. 27. Sermon will be creating wonder in the hearts of the listeners. 28. Sermon will not be speedy. 29. Sermon will be without much delay. 30. Sermon will be of many types with great varieties (various expressions and
describing the matters in many ways. 31. Sermon will be outstanding in comparison with others. 32. Sermon will be with distinct letters, phrases and sentences. 33. Sermon will be substantial. 34. Sermon will be fluent and proving well the subject desired to tell.
35. Sermon will be originating naturally.
प्रतिक्रमण सूत्र सह विवेचन - भाग - १ Jain Education International
Pratikramana Sutra With Explanation -Part-1
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