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sūtra part
1. navakāra mahāmantra
diseases disappears within an area of 125 yojanas of moving about of the
bhagavāna [apāya = disturbances; apagama = destruction].
10. jñānātiśaya = One's own doubts are solved certainly on presentation to any of the living being by the tirthankara. 11.pūjatiśaya=All indras, gods, cakravartis [emperors], baladeva, vāsudeva, kings, human beings and animals with five organs etc. adore the tirthankara bhagavanta.
12. vacanātiśaya = The sermon of the bhagavanta possessing thirty five qualities is understood by the gods, human beings and animals with five organs in their own languages.
| अतिशय = आश्चर्य जनक गुण जो तीर्थंकर के सिवाय विश्व के अन्य atiśaya = Amiraculous quality which is not found in any of the living beings in the किसी भी जीव में नहीं होता है.
universe except the tirthankara. Thirty five qualities of the sermon of tirthankara bhagavanta :1. Sermon will be in accordance with the rules of grammar.
2. Sermon will be in high tone.
3. Sermon will be systematic and cultured.
4. Sermon will be grave like clouds.
5. Sermon will have an echo.
१. नवकार महामंत्र
सूत्र विभाग
तक अतिवृष्टि, अनावृष्टि तथा सर्व रोग प्रायः मिट जाते हैं. [अपाय = उपद्रव, अपगम = नाश].
१०. ज्ञानातिशय = तीर्थंकर द्वारा समझाने पर किसी भी जीव को अपनी शंका का समाधान अवश्य हो जाता है.
११. पूजातिशय = इंद्र, देव, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, महाराजा, मनुष्य, तिर्यंच पंचेंद्रिय आदि सभी तीर्थंकर भगवंत की पूजा करते हैं.
१२. वचनातिशय = पैंतीस गुणों से युक्त भगवंत की वाणी देव, मनुष्य और तिर्यच पंचेंद्रिय अपनी अपनी भाषा में समझ लेते हैं.
तीर्थंकर भगवंत की वाणी के पैंतीस गुण :
१. वाणी व्याकरण के नियम से युक्त होती है.
२. वाणी ऊंचे स्वर में होती है.
३. वाणी व्यवस्थित और शिष्ट होती है.
४. वाणी मेघ की तरह गंभीर होती है.
५. वाणी प्रतिध्वनि वाली होती है.
प्रतिक्रमण सूत्र सह विवेचन भाग १
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Pratikramaņa Sūtra With Explanation - Part - 1
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