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प्रस्तावना
Preface वे लौटेंगे ही. दिन भर खेलने वाले बच्चे शाम ढलते ढलते अपने घर | Achild playing whole day sleeps soundly in the smooth lap of his mother after
को वापस लौटकर माँ की शीतल गोद में आराम से सो जाते हैं. इसी | returning back tothehouseas the eveningdeclines.Similarlyamanhastoreturn |प्रकार मानव को आत्मा में लौटना होगा. इसी को कहा जाएगा | back into the soul. It is called pratikramana. pratikramana is quite opposite to प्रतिक्रमण, आक्रमण से ठीक विपरीत होगा प्रतिक्रमण, आक्रमण का | akramana. Meaning ofakramanais gamana [going out ofaman from the soul मतलब होगा व्यक्ति का आत्मा में से संसार में गमन और प्रतिक्रमण into the world and meaning of pratikramana is punarāgamana (returning back] का मतलब होगा व्यक्ति का संसार में से आत्मा में पुनरागमन, of a man from the world into the soul.
प्रतिक्रमण की क्रिया शास्त्रीय परिभाषा में आवश्यक क्रिया के The rite of pratikramana comes within āvaśyaka kriyā (necessary rite) in अंतर्गत आती है. आवश्यक क्रिया यानी अवश्यमेव करने योग्य क्रिया. I scripturaldefinition.avasyakakriyāmeanstheritethatshould bedonecertainly. श्वाँस लेना शरीर के लिए जितना आवश्यक है उससे ज्यादा आवश्यक As much as breathing is necessary for the body, more than that pratikramana है आत्मा के लिए प्रतिक्रमण. इस आवश्यक क्रिया को छ: विभागों में is necessary for the soul. This necessary rite is divided into six parts: 1. sāmāyika |विभक्त किया गया है -१. सामायिक [सामाइय), २. चतुर्विंशति-स्तव | [sāmaiya], 2. caturvinsati-stava [cauvisa-thaya / cauvisa-ttho], 3. vandana [[चऊवीस-थय / चऊवीस-त्थो), ३. वंदन [वंदणय], ४. प्रतिक्रमण [vandanaya],4.pratikramana [padikkamana],5.kayotsarga [kāussaggaland [पडिक्कमण], ५. कायोत्सर्ग [काउस्सग्ग] एवं ६. प्रत्याख्यान | 6. pratyākhyāna (paccakkhāna). Though explanation of these six necessary [पच्चक्खाण]. इस छोटी सी प्रस्तावना में छः आवश्यकों का स्वरूप ठीक | rites is impossible in this small preface, even then it will be understood in short. से समझाना संभव नहीं है, फिर भी संक्षेप में इसे समझेंगे,
सामायिक - सर्व प्रथम आवश्यक है सामायिक. सामायिक यानि sāmāyika - The foremost necessity is sāmāyika. sāmāyika means efforts for | समत्व भाव की साधना. जब तक समत्व भाव की उपलब्धि नहीं होगी | emotional equanimity.As long asequanimityisnotobtained, all religiousrites will वहाँ तक सभी धर्म क्रियाएँ अपूर्ण बनी रहेंगी. इसी लिए जैन धर्म में | be incomplete. Hence importance is given more for attainment of equanimity in समत्व भाव की साधना पर सबसे ज्यादा बल दिया गया है क्योंकि आत्मा | Jainism because real dharma of soul itself is starting from equanimity. The soul प्रतिक्रमण सूत्र सह विवेचन - भाग-१
Pratikramana Sūtra With Explanation - Part - 1
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