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(Kth. Up. 1. 2. 18 = Gt. 2. 20; Mh. Up. 5.165) + अविनाशी तु तद् विद्धि... विनाशमव्ययस्यास्य न कश्चित् कर्तुमर्हति .... (Gt. 2. 17) जहा य अग्गी अरणी असंतो खीरे द्ययं तेल्लमहा तिलेसु, एवमेव जाया सरीरंसि सत्ता....
(2)
(Utt. 14.18)
(7)
(8)
Section 3: Uttaradhyayana-sūtra
नत्थि जीवस्स नासु त्ति एवं पेहेज्ज संजए.... Cp. जीवापेतं वाव... म्रियते, न जीवो म्रियत इति ..
+ अविनाशी वा अरे अयमात्मा...
+
न जायते म्रियते वा विपश्चिद् अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराण: ..
+ क्षीरे सर्पिरिवार्पितम्...
+ अरण्यो र्निहितो जातवेदाः...
Bansidhar Bhatt
Cp. तिलेषु तैलं दधनीव सर्पिः, अरणीषु चाग्निः एवमात्मा गृह्यते ....
(Śv. Up. 1. 15
+ घृतमिव पयसि निगूढम् ...
+ तिलेषु तैलमिव....
+ तिलानां तु यथा तैलम्...
+ तिलेषु च यथा तैलम्....
Cp. समौ शत्रौ च मित्रे च.. सव्वारंभपरिच्चाओ....
+ Cp. सर्वारंभपरित्यागी... समलेडुकंचणे....
Cp. समलोष्टाश्मकांचन:..
समया सव्वभूएसुसत्तुमित्तेसु वा...
समो य सव्वभूएसु.... Cp. समोऽहं सर्वभूतेषु...
(Utt. 2. 27)
(Ch. Up. 6. 11.3) (Bdā. Up. 4. 5. 14)
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लाभालाभे सुहे दुक्खे... समो निंदापसंसासु तहा माणावमाणओ....
Cp. स्तूयमानो न तुष्येत निंदितो न शपेत्परान्...
Jambu-jyoti
= Bhm. Up 1 ) (Śv. Up. 1. 16) (Kth. Up. 2. 4. 8) (Bhmbd. Up. 20)
(Hms. Up. 4) (Dhbd. Up. 7) (Bhmvd. Up. 35 ) (Utt. 19.25)
(Gt. 12. 18) (Utt. 19.29) (Gt. 12. 16)
+ सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ.....
+ समः... मानावमानयो:, तुल्यनिंदास्तुतिः.... + ...तुल्यनिंदात्मसंस्तुति:....
जहा पोमं जले जायं नोवलिप्पइ वारिणा, एवं अलित्तं कामेहिं तं वयं बूम माहणा...
+ तम्हा खलु अपरिसाडिणो बुद्धा नोवलिप्पंति पुक्खरपत्तं व वारिणा...
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+ सव्वे विरत्तो... न लिप्पए भवमज्झे वि संतो, जलेण वा पोक्खरिणी- पलासं ...
(Utt. 35.13) (Gt. 14. 24) (Utt. 19. 89 )
(Gt. 9.29)
(Utt. 19.90) (KthR. Up. 4)
(Gt. 2. 38)
(Gt. 12. 18-19)
(Gt. 14. 24)
(Utt. 25-27)
(Utt. 32. 34 etc., passim.)
(Rs. 22. 1)
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