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Bansidhar Bhatt
Jambū-jyoti
हत्थीसु एरावणमाहु... + ऐरावतं गजेन्द्राणाम्...
(Gt. 10.27) + जहा...कुंजरे..
(Utt. 11. 18) + एरावण इव कुंजराणं
(Prvy. 26) + सिहो मिगाणं... Cp. मृगाणां च मृगेन्द्रः...
(Gt. 10.30) + सिहे मियाण पवरे
(Utt. 11.20) + सीहोव्व जहा मिगाण
(Prvy. 26, 29) + सलिलाण गंगा... Cp. स्रोतसाम्...जाह्नवी...
(Gt. 10.31) + जहा सा नईण पवरा...
(Utt. 11.28) + ता आप: स प्रजापतिः
(Yajur-veda 32. 1) + पक्खीसु वा गरुले वेणुदेवो... Cp. वैनतेयश्च पक्षिणाम्...
(Gt. 10. 30) + ...दिव्यः स सुपर्णो गरुत्मान्
(Rv. 1 164.46) + सुपर्णं विप्रा...एकं सत्तं...कल्पयन्ति
(Rv. 10. 114.5) (14) जहा कुम्मे सअंगाइ सए देहे समाहरे। एवं पावाई मेधावी अज्झप्पेण समाहरे ।।
(Su. I. 8. 16) + कुम्मो व्व अल्लीण-पलीण-गुत्तो...
(Dasa. 8.40) + कुम्मो इव गुत्तिदिए अल्लीणे पल्लीणे चिट्ठइ,..
(Bhag. 25.7.215) + कुम्मो विव सअंगाई सए देहम्मि साहरे...
(Rs. 16. 1755) + कुम्मो इव...गुत्ते...
(Aup.8 30 = Prvy. 29) Cp. इन्द्रियाणि समाहृत्य कूर्मोङ्गानीव सर्वशः...
(Ndpv. Up. 3.74) + कर्मोङ्गानीव संहृत्य मनो हृदि निरुध्य च...
___ (Ks. Up. 3) + यदा संहरते चायं कूर्मोङ्गानीव सर्वशः...
(Gt. 2. 58) + यदा संहरते कामान् कर्मोङ्गानीव सर्वशः...
(MBh. 12. 168.40) + प्रसार्येह यथाङ्गानि कूर्मः संहरते पुनः...
(MBh. 12. 313. 39) + (see also Samyuttanikāya 1.7, 17 foll.) (15) सयं कडं णन्नकडं च दुक्खं आहेसु विज्जाचरणं पमोक्खं... (Su. I. 12. 11) ___Cp. विद्यया तदारोहन्ति यत्र कामाः परागताः । न तत्र दक्षिणा यन्ति नाविद्वांसस्तपस्विन-इति ।।
(SpBr. 10. 5. 4. 16) (16) सव्वं जगं तू समयाणुप्पेही पियमप्पियं कस्सइ णो करेज्जा... (Su. I. 10. 7 = 13. 22) + पियं न विज्जइ किंचि अप्पियं विन विज्जई...
(Utt. 9. 15) Cp. ..अशरीरं वाव सन्तं न प्रियाप्रिये स्पशतः...
(Ch. Up. 8. 12. 1) (17) नविणासी (वि णासी?) कयाइ वि...
(Su. I. 1.3.9) ___ + ...सतो य अत्थी असतो य णत्थि...
(Su. II. 6. 12)
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