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________________ Hemaraj Pande's Caurāsi Bol दोहा - अडिल्ल साभरण बसन मुगति चाहै मानि परिग्रह हठ गहै। रवि चंद मंडल मूल आया वीर वंदन कौ कहै ॥ सासुती गति मरजाद मेहि सूर ससि की जानते । अनमिल बखानहि और मानहि कलपना सरधान तै ॥७७॥ Jain Education International दूषन अठारह माहि बदलै कहै और सवारिकै । चौतीस अतिसय बदल केई गहहि और विचारिकै ॥ जिनिम (?) तै विनासी सौं (?) लरहि मुनि दोष रंच न बानतै (?) अनमिल बखानहि और मानहि कलपना सरधान तै ॥७८॥ सोधरम सुरपति जीतने कौ चमर वितरपति गयौ । तसु वज्रदण्ड विलास पंडित कहिहि वीर सरनि भयौ ॥ कर पूषत(?) मरि गयै न खिरै युगल तनु परवान तै। अनमिल बखानहि और मानहि कलपना सरधान है ॥ ७९ ॥ निरबान होत जिनेस काया खिरै दामिनि बत ही । वर नारि दे थिर करै श्रावक देखि कामी मुनि कही ॥ केवली तनु तै जीवबध है कहै मत मदपान तै। अनमिल बखानहि और मानहि कलपना सरधान तै ॥ ८० ॥ सुर मिले जिन दाढ पूजहि इंद्र जिन जब सिव गमै । जिन वीर मेरु अचल चलयौं जनम कल्यानक समै ॥ जिनजनम सूचक सुपन चौदह और नही मन आन तैं I अनमिल बखानहि और मानै कलपना सरधान तै ॥ ८१ ॥ गंगा देबी स्यौ है पचपन्न वर्ष हज्जार । चक्रवर्ति भरतेस नै कियो लोग व्यवहार ॥८२॥ भोगभूमि छानवै न गनहि उछेदि कै, चर्म नीर मै दोष न लागै वेदि कै । घृत करि साधित वासी भोजन लेतु है, सारे फल कौ भुंजत दोष न देतु है ॥८३॥ सवया इकतीसा - रिषभ विरागता निमित्त नीलंजना नृत्य मानै नही देव देवी की (?) कीनी विधान की । माता पिता जीवतैं विरागता कौं नाहि धरै वीर वर्धमान औसी गर्भवास आन की ॥ बाहूबल कौ कहै कि युगल सरूपधारी हाड पूजै कौडे (?) थापि कहै परिवान की ( ? ) । नाभि मरुदेवी कैं जुगल धरम मानतु है । तिनहीतै जिन उतपत्ति सरधान की ॥ ८४ ॥ For Private & Personal Use Only 395 www.jainelibrary.org
SR No.006503
Book TitleJambu Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky, Jitendra B Shah
PublisherKasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages448
LanguageEnglish
ClassificationBook_English, Philosophy, & Religion
File Size21 MB
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