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निर्युक्तयः - भने संयात नियुक्तियो छे. (सेणं अंगट्टयाए) तत्खलु अङ्गार्थतथा-ते आयारांग मंगनी अपेक्षाओ (पढमे अंगे) पहेतु अंग छे. (दो सुयक्खंधा) द्वौ श्रुतस्कन्धौ - तेना में श्रुतरन्ध छे, (पणवीसं अज्झयणा) पञ्चविंशतिरध्ययनानि - यीश अध्ययनो छे, (पंचासीइं उद्देसणकाला) पञ्चाशीतिं उद्देशन कालान्- पंन्याशी उद्देशन आज छे, (पंचासीइ समुद्दे सणकाला) पञ्चाशीर्ति समुद्देशन कालान् भने पंयाशी समुद्देशनअन छे अट्ठारस पदसहस्साई पदग्गेणं) अष्टादशपदसहस्त्राणि पदाग्रेण मा संगमा अढार हुन्नर यह छे, (संखेजा अक्खरा) संख्यातानि अक्षराणि - संध्यात अक्षरे। छे, (अनंता गमा) अनन्ताः गमाः -- अनन्त गम छे, (अनंता पज्जवा ) अनन्ताः पर्यायाः - अनन्त पर्याय। छे, (परित्ता तसा) परीता त्रसाः - असंख्यात त्रस छे, (अनंता थावरा) अनन्ताः स्थावर:- अनंत स्थावर छे, उपरोक्त सघना (जिणपण्णत्ता भावा) निनात प्रवाहि पार्थो ने (सासयकड निबद्ध निकाइया) शाश्वतकृत निबद्ध निकाचितानि :- द्रव्यार्थि नयनी अपेक्षाओ (सासय) शाश्वत छे. पर्यायाथिंक नयनी अपेक्षाये अनित्य छे, निबद्ध-सूत्र३ये प्रथित छे, निकाचित नियुक्ति હેતુ અને ઉદાહરણથી યુકત છે તે સઘળા જીવાદિક પદાર્થાનું આ આચારાંગસૂત્રમાં ( आघविज्जति) श्राख्यायन्ते सामान्य भने विशेषज्ञये उथन उरायु छे, (पण्णविज्जन्ति) प्रज्ञाप्यन्ते -वथन पर्यायथी अथवा, नामाहिना लेहथी स्थन शयु छे. (परूविजंति) प्ररूप्यन्ते - २१३५ प्रदर्शन सहित वर्णन उरायु छे (दंसिज्जंति) दर्श्यन्ते - अपमान, उपमेय याहि द्वारा समन्ववामां आवे छे, (निदंसिज्जति) निदर्श्यन्ते - अन्य कवोनी हयाने भाटे तथा लव्य लवाना छुट्याएणुने निभिते वारंवार निश्चयपूर्व! हेवामां आवे छे, ( उवदसिजंति) उपदर्श्यन्ते - उपनय
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
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