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अनु. विषय
पाना नं.
६ लगवानने उभी धर्मशालाभोंमें, उधान सथित गृहोंमें, नगर
३ भध्यभागमें, श्मशानभे, शून्यगृहभे, वृक्षभूसमें निवास ध्यिा ।
3०८ ७ यौथी गाथा हा अवता, गाथा और छाया।
उ०८ ८ भगवानने घस प्रकार मावासोंमें कुछ अधिऽ तेरह वर्षो
तठ निवास हिया, और वहाँ पर निद्राहिप्रभा और विस्योतसिजा से रहित भगवान् ध्यानावस्थामें रहे।
3०८ ८ पाँयवी गाथा छा अवतरा,गाथा और ाया।
उ०८ १० भगवान् महावीर स्वाभी अधिऽ सोते नहीं थे, यदि
निद्राआने लगती थी तो लगवान् सावधान होरागते रहते थे, अप्रितिज्ञ भगवान् छमस्थावस्थाभे रात्रि अन्तिम प्रहरमें अन्तर्भुहूर्तभात्र शयन उरते थे।
306 ११ छठी गाथा डा अवतरा, गाथा और छाया।
उ०८ १२ भगवान् महावीरस्वाभी निद्रा घोषोंठो सम्छी तरह जानते
हुसे निद्रा आने सभय उठ र, याहर निसर, भुहूर्त भ्रभरा हर झिर ध्यानमें बैठ जाते थे।
306 १३ सातवीं गाथाठा अवतरा, गाथा और छाया ।
૩૦૯ १४ माश्रयस्थानों में भगवान्टो भयंर, भने प्रहार उपसर्ग
हुसे और सांप, नेवले तथा गीध माहिछे भी उपसर्ग हमे। उ१० १५ आठवीं गाथाछा सवतरा, गाथा और छाया ।
उ१० १६ योर व्यभिचारी आहि, शतिधारी ग्राभरक्षा, व्यभियारिशी
स्त्रियां और अन्य पुष लोग भगवान्छो उपसर्गरते थे। उ१० १७ नवभी गाथाठा अवतरा, गाथा और छाया।
૩૧ ૧ १८ भगवान् मेहलौष्टि पारलौष्सिने प्रहार उपसर्गो छो
सहते थे, और अनेछ प्रहारठे सुरलि-दुरलिगन्धों को भी सहते थे।
૩૧૧ १८ हसवीं गाथाठा अवतराश, गाथा और छाया।
उ११ २० भगवान् पांय समितियोंसे युज्त होर अनेछ प्रहार स्पर्शोटो सहन न्येि, सत्पभाषी भगवान् संयभमें सरति
और विषयानन्हमें रति छोटूर र संयभछे माराधनमें प्रवृत्त हुसे।
૩૧૧ २१ ग्यारहवीं गाथाठा सवतराा, गाथा और छाया ।
૩૧ ૧
का माराया।
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર ૩